Book Title: Bhav aur Anubhav
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 7
________________ द्वितीय संस्करण भाव और अनुभावके प्रति जनताका जो लगाव रहा, उसे मैं वाक् और मनस्की समापत्ति मानता हूँ। जहाँ वाक् और मनस् एक दिशागामी होते हैं, वहीं हृदयका स्पन्दन धमनियोंमें नव-रक्त प्रवाहित करता है । सलिल कमलको उत्पन्न करता है पर उसके परिमलका प्रसार वह नहीं करता। वह पवनका काम है। भारतीय ज्ञानपीठने वही काम किया है । इसलिए ‘भाव और अनुभाव'का दूसरा परिवद्धित संस्करण सद्यः अपेक्षित हो रहा है। - मुनि नथमल दिल्ली २०२१ आश्विन शुक्ला ७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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