Book Title: Bhagwati Sutra Part 07
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 712
________________ भंगवती ख्यानावरणक्रोधमानमायालोभान् क्षपयति, प्रत्याख्यानावरणक्रोधमानमायालोभान क्षपयित्वा, संवलनकोधमानमायालोभान् क्षपयति, संज्वलनक्रोधमानमायालोभान् क्षपयित्वा पञ्चविधं ज्ञानावरणीयम् , नवविधं दर्शनावरणीयं, पञ्चविधम् चक्खाणकसाए कोहमाणमायालोभे खवित्ता, पच्चक्खाणावरणकोह माणमायालोभे खवित्ता संजलणकोहमाणमायालोभे खवेद, संजलण कोहमाणमायालोभे खवित्ता पंचविहं नाणावरणिज्ज नवविहं दरिसणा-. वरणिज्ज पंचविहं अंतराइयं, तालमत्थाकडं च णं मोहणिज्ज कटु कम्मरयविकरणकरं अपुवकरणं अणुपविट्ठस्स अणंते अणुत्तरे निव्याघाए, निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने ) अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ इनका क्षय करके फिर वह अप्रत्याख्यान संबंधी क्रोध, मान, माया लोभ इनका क्षय करता है। अप्रत्याख्यान संबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ इनका क्षय करके फिर वह प्रत्याख्यानावरण संबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ इनका क्षय करता है। प्रत्याख्यानावरण संबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ का क्षय करके फिर वह संज्वलन संबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ इनका क्षय करता है। संज्वलन संबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ इनका क्षय करके फिर वह पांच प्रकार के ज्ञानावरणीय कर्म को, नौ माणमाया लोमे खवेइ, अपच्चक्खाणकसाए कोहमाणमायालोमे खवित्ता, पच्च. मखाणावरणकोहमाणमाया लोभे खवित्ता संजरण कोहमाणमाया लोमे खवेइ, संजलणकोहमाणमायालोभे खविता पंचविहं नाणावरणिज्जं नवविहं दरिसणावरणिज्ज पचविहं अंतराइय, तालमत्थाकडं च णं मोहणिज्ज कटु कम्मरयविकरणकर' अपुवकरणं अणुपविठ्ठास अणते अणुत्तरे निवाघाए, निरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरनाणदसणे समुप्पन्ने) मनन्तानुमधी अध, मान, माया અને લોભને ક્ષય કરીને તે અપ્રત્યાખ્યાન સંબંધી ફોધ, માન, માયા અને લોભને ક્ષય કરે છે. અપ્રત્યાખ્યાનાવરણ સંબંધી ફોધ, માન, માયા અને લેભને ક્ષય કરીને પ્રત્યાખ્યાનાવરણ સંબંધી ફોધ, માન, માયા અને લેભને ક્ષય કરે છે. પ્રત્યાખ્યાનાવરણ સંબંધી ક્રોધ, માન, માયા અને લેભને ક્ષય કર્યા પછી તે સંજવલન સંબંધી કોધ, માન, માયા અને લોભને ક્ષય કરે છે. સંજવલન સંબંધી ક્રોધ, માન, માયા અને લેભને ક્ષય કરીને પાંચ પ્રકારના જ્ઞાનાવરણીય કર્મને, નવ પ્રકારના દર્શનાવરણીય

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