Book Title: Bhagwati Sutra Part 07
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 754
________________ ७३४ भंगवतीसो खलु भदन्त ! कियन्ति अध्यवसानानि प्रज्ञप्तानि? गौतम ! असंख्येयानि, एवं यथा अश्रुत्वा तथैव यावत् केवलवरज्ञानदर्शनं समुत्पद्यते । स खलु भदन्त ! केवलिमज्ञप्तं धर्मम् आख्यापयेद् वा, प्रज्ञापयेद् वा, प्ररूपयेद् वा ? हन्त, गौतम ! आख्यापयेदु वा, प्रज्ञापयेद् वा, प्ररूपयेद् वा । स खलु भदन्त ! प्रव्राजयेद् वा, मुण्डयेद् वा, दो कषायों में होता है तो संज्वलन संबंधी माया और लोभ इन दो कषायों में होता है। और जब वह एक कषाय में होता है तब वह . संज्वलन संबंधी एक लोभ कषाय में होता है। (तस्स णं भंते केवइया अज्झवसाणा पण्णत्ता) हे भदन्त !, उस श्रुत्वा अवधिज्ञानी को कितने अध्यवसाय होते हैं ? (गोपमा) हे गौतम! (असंखेजा) उस श्रुत्वा अवधिज्ञानी को असंख्यात अध्यवसाय होते हैं । (एवं जहा असोचाए तहेव जाव केवलवरनाणदसणे समुप्पज्जा) इस तरह जसा कि अश्रुत्वा के लिये कहा गया है उसी तरह से यावत् " श्रुत्वा केवली के लिये अनंतज्ञान-केवलज्ञान और अनंतदर्शन-केवलदर्शन उत्पन्न होते हैं" यहां तक कहना चाहिये। (से णं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्मं आघवेज्ज वा, पनवेज्ज वा, परूवेज्ज वा) हे भदन्त ! वह श्रुत्वा केवली केवलि द्वारा प्रज्ञप्त धर्म का कथन करता है, उसकी प्रज्ञापना करता है और क्या उसकी प्ररूपणा करता ? (हता, आघवेज्ज वा पन्नवेज्ज वा परवेज्ज वा) हां, गौतम ! ભાવ રહે છે. જે તે બે કષાવાળો હોય તે તે જીવમાં સંજવલન માયા અને સંજવલન લેભને જ સદભાવ રહે છે. જે તે એક કષાયવાળો હોય તે તે જીવમાં ફકત સંજવલન કષાયને જ સદ્દભાવ રહે છે. (तस्स णं भंते ! केवइया अज्यवसाणा पण्णता १) महन्त ! ते श्रुत्व। भवधिज्ञानी मा मध्यवसायवाणी डाय छ ? (गोयमा ! असंखेज्जा) 8 गौतम! ते श्रुत्वा माधज्ञानाना मसभ्यात मध्यवसाय डाय छे. (एवं जहा असोच्चाए तहेव जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जा ) मा शत मश्रुत्वान मनु લક્ષીને જેવું કથન પહેલાં કરવામાં આવ્યું છે, એવું જ કથન શ્રાને અનુલક્ષીને પણ કરવું જોઈએ. “શ્રદ્વા અવધિજ્ઞાનીમાં અનંતજ્ઞાન (કેવળજ્ઞાન) અને અનંતદર્શન (કેવલદર્શન) ઉત્પન્ન થઈ જાય છે, ” આ કથન પર્યતનું પકત કથન અહીં પણ ગ્રહણ કરવું જોઈએ. ( से णं भंते ! केवलिपण्णत्त धम्म आघवेज्ज वा, पनवेज्ज वा, परवेज वा). ભદત ! તે કૃત્વા કેવલી દ્વારા પ્રજ્ઞપ્ત ધર્મનું કથન કરે છે, તેની પ્રજ્ઞાપના કરે છે? भरु५। ७रे छ (हंता, आघवेज्ज पा, पन्नवेज्ज वा, परवेज वा), गौतम !

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