Book Title: Bhagwati Sutra Part 07
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 765
________________ प्रमेयचन्द्रिका री० श०९ ७०३१ सू०६ श्रुत्वाप्रतिपन्नावधिनानिनिरूपणम् ७४५ स्थेव तिसृषु अन्तिमासु भावलेश्यालु अवधिज्ञानं लभेत तथापि द्रव्यलेश्याः आश्रित्य पट्स्वपि लेश्यासु लभतेऽवधिज्ञानं सम्यक्त्वश्रुतवदित्याशयः । उक्तश्च 'सम्मत्तसुयं सव्वासु लन्मइ ' सम्यक्त्वश्रुतं सर्वासु लेश्याम लभते इति तदर्थः, तल्लाभे चासौ लब्धावधिज्ञानी षट्रस्वपि भवतीत्युच्यते, ता एवाह-'तं जहा कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए' तद्यथा-कृष्णलेश्यायां, यावत् शुक्ल लेश्यायां च । गौतमः पृच्छति-' से णं भंते ! कइसु णायणेसु होज्जा!' हे भदन्त ! स: अनन्तरोक्तविशेषणविशिष्टोऽवधिज्ञानी कतिषु ज्ञानेषु भवेत्? भगवानाह-'गोयमा ! यहां जो छ लेश्याओं में वर्तमान जीव के अवधिज्ञान होता है, ऐसा जो कहा गया वह सम्यकश्रुत की तरह द्रव्यलेश्याओं को आश्रित करके कहा गया है-कहा भी है-"सम्मत्तसुयं सव्वासु लन्भइ" सम्यक्त्वश्रुत छहों लेश्याओं में वर्तमान जीव को प्राप्त हो जाता है-इस तरह जब छहों लेश्याओं में अवधिज्ञान का लाभ होता है तो यह लब्धाव. विज्ञानी छहों लेश्याओं में वर्तमान रहता है ऐसा कहा गया है। वे छह लेश्याएं इस प्रकार से हैं-(कण्हलेस्साए जाव सुक्कलेस्साए) कृष्णलेश्या, यावत्-शुक्ललेल्या यहां यावत् पदसे अवशिष्ट नीलादिक चार लेश्याओं का ग्रहण हुआ है। ___ अब गौतमस्वामी प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(से णं भंते ! कइसु नाणेसु होज्जा) हे भदन्त ! अनन्तरोक्त इन विशेषणों वाला वह अवधिज्ञानी कितने ज्ञानों में वर्तमान होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते છેલ્લી ત્રણ પ્રશસ્ત લેશ્યાઓમાં વિદ્યમાન જીવને અવધિજ્ઞાન થાય છે પરંતુ અહીં જે જે વેશ્યાઓમાં વિદ્યમાન જીવને અવધિજ્ઞાન થાય છે. એવું કહેવામાં આવ્યું છે તે સમ્યક કૃતની જેમ દ્રવ્ય લેશ્યાઓની અપેક્ષાએ કહેवामां मायुं छे. “ सम्मत्तसुय सव्वासु लव्भइ " सभ्यत्व श्रुत ७ वश्याએમાં વિદ્યમાન છવને પ્રાપ્ત થઈ જાય છે. આ રીતે છએ શ્યાઓમાં વિદ્ય માન જીવને અવધિજ્ઞાનની પ્રાપ્તિ થતી હોવાથી એવું કહેવામાં આવ્યું છે કે તે લખ્યાવધિજ્ઞાની છએ છ લેગ્યાએથી યુક્ત હોય છે.” તે છે વેશ્યાઓનાં नाम 241 प्रमाणे छ-" कण्हलेस्साए जाव सुकलेस्सोए" goसेश्या, नासवेश्या, કાતિલેશ્યા, તેજલેશ્યા, પદ્મશ્યા અને શુકલેશ્યા. गौतम स्वाभाना प्रश्न-(से णं भंते ! कइसु नाणेसु होजा?). ભદન્ત ! પૂર્વોક્ત વિશેષણવાળે અવધિજ્ઞાની કેટલા જ્ઞાનેથી યુક્ત હોય છે ? महावीर प्रभुना उत्त२--" गोयमा !" गौतम ! ते पन्नावधिज्ञानी भ ९४

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