Book Title: Bhagwati Sutra Part 07
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 777
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०९ उ०३१सू० ६ ध्रुत्वा प्रतिपन्नावधिज्ञानिनिरूपणम् ७५७ आघवेज वा, पनवेज्ज वा, परूवेज्ज वा, ' हे गौतम ! स श्रुत्वा केवलज्ञानी केवलिप्रज्ञप्तं धर्मम् आख्यापयेद् वा, प्रज्ञापयेद् वा, प्ररूपयेवा । गौतमः पृच्छतिनिर्व्याघातं निरावरणं कृत्स्नं प्रतिपूर्ण केवलवरज्ञानदर्शनं समुत्पन्नं भवेदिति भावः । गौतमः पृच्छति-से णं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्मं आघवेज्ज वा, पन्नवेज्ज वा, परूवेज वा ? ' हे भदन्त ! स खलु श्रुत्वा समुत्पन्न केवलज्ञानी कि केवलिप्रज्ञप्तं धर्मम् अख्यापयेद् वा, प्रज्ञापयेद् वा, प्ररूपयेद् वा ! ' भगवानाह-'हता, रनेवाले अपूर्वकरणमें प्रविष्ट हुए इसके अनन्त, अनुत्तर, नियाघात, निरावरण, कृत्स्न, प्रतिपूर्ण श्रेष्ठ केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हो जाते हैं। ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(से णं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्म आघवेज्ज वा, पन्नवेज्ज वा, पल्वेज्ज वा) हे भदन्त! वह श्रुत्वा समुपन्न केवलज्ञानी क्या केवली प्रज्ञाप्त धर्म का कथन करता है, उसकी प्रज्ञापना करता है ? और क्या उसकी प्ररूपणा करता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(हंता, आघवेज्ज वा, पन्नवेज्ज वा, परवेज्ज वा) हां, गौतम! वह श्रुत्वा केवलज्ञानी केवलिप्रज्ञप्त धर्म का कथन करता है उसकी प्रज्ञापना करता है और उसकी प्ररूपणा करता है। अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-(से णं भंते ! पवावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा) हे भदन्त ! वह श्रुत्वा केवलज्ञानी शिष्यों को प्रत्रज्या दे सकता है, उन्हें दीक्षित कर सकता है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं (हंता, થઈ જાય છેઆ રીતે ઉપર્યુક્ત કર્મોને “તાલમસ્તક કૃત” ( અર્થ આગળ સ્પષ્ટ કર્યો છે) કરજને વિખેરનાર અપૂર્વકરણમાં પ્રવિષ્ટ થયેલા તે થવા भवधिज्ञानान मनन्त, अनुत्तर, निव्याघात, निरा२, पृत्स्न, (संपूर्ण) પ્રતિપૂર્ણ અને શ્રેષ્ઠ કેવળજ્ઞાન અને કેવળ દર્શન ઉત્પન્ન થઈ જાય છે गौतम स्वाभाना प्रश्न-( से णं भंते ! केवलिपन्नत्वं धम्म आघवेज वा, पन्नवेज्ज वा, परवेज वा ? ) 3 महत्त! ते श्रुत्वा समुत्पन्न परशानी मनुष्य શું કેવલિરૂમ ધર્મનું કથન કરે છે, તેની પ્રજ્ઞાપના કરે છે, અને તેની પ્રરૂપણ કરે છે ? महावीर प्रभुन। उत्तर-(हता, आघवेज्ज वा, पनवेज्ज वा, परवेज वा) હા, ગૌતમ ! તે ઋત્વા કેવળજ્ઞાની કેવલિપ્રજ્ઞસ ધર્મનું કથન કરે છે, તેની પ્રજ્ઞાપના પણ કરે છે અને તેની પ્રરૂપણ પણ કરે છે. गौतम स्वाभीमा प्रश्न-( से णं भते ! पवावेज वा, मुंडावेज वा ?) હે ભદન્ત ! શું તે થવા કેવલજ્ઞાની શિષ્યને પ્રવજ્યા દઈ શકે છે અને તેમને દીક્ષિત કરી શકે છે?

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