Book Title: Bhagwati Sutra Part 07
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 752
________________ ७३२ भगवती सूत्रे भवति, पुरुषनपुंसकवेदको वा भवति ? गौतम ! स्त्रीवेदको वा भवति, पुरुषवेदको वा भवति, पुरुष नपुंसकवेदको वा भवति, नो नपुंसकवेदको भवति । स खलु भदन्त ! किं सकपायी भवति, अपायी वा भवति ? गौतम । सकपायी वा भवति, अपायी वा भवति । यदि अकपायी भवति किम् उपशान्तकपायी भवति, क्षीणकषायी भवति ? गौतम | नो उपशान्तकपायी भवति, क्षीणकपानी इत्थीवेयए होज्जा, पुरिसवेगए होज्जा, नपुंसगवेयए होज्जा, पुरिसनपुंगवेयए वा होज्जा ) हे भदन्त । यदि वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी वेदसहित होता है तो क्या वह स्त्रीवेदवाला होता है, या पुरुषवेदवाला होता है, या नपुंसक वेदवाला होता है, या पुरुषनपुंसक वेदवाला होता है ? (गोमा ) हे गौतम । (इत्थीवेयए वा होज्जा, पुरिसवेयए वा होजा, पुरिस नपुंसमवेयर वा होज्जा) वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी स्त्रीवेदवाला भी होता है, पुरुपवेदवाला भी होता है, पुरुषनपुंसक वेदवाला भी होता है, परन्तु वह नपुंसक वेदवाला नहीं होता है । ( से णं भंते । किं सकसाई होज्जा, अकसाई वा होज्जा ) हे भदन्त ! वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी क्या सकषायी होता है या अकपायी होता है ? (गोयमा) हे गौतम ! वह शुत्वा अवधिज्ञानी ( सकसाई वा होज्जा, अकसाई वा होज्जा ) सकपायी भी होता है अकपायी भी होता है। (जह अकसाई होज्जा किं वसंतकसाई होज्जा, खीणकसाई होज्जा ) हे भदन्त ! यदि वह श्रुत्वा अवधिज्ञानी अरुपायी होता है तो क्या उपशान्तकषायवाला होता है. नपुंसगवेयए होज्जा, पुरिसनपुं सगवेयए होन्जा १ ) ભદન્ત ! જો તે શ્રુત્વા અવધિજ્ઞાની વૈદસહિત હાય છે તેા શું સ્ત્રીવેદવાળા હોય છે, કે પુરુષવેઢવાળા હાય છે, કે નપુંસક વેઢવાળા હાય છે કે પુરુષ નપુ"સક વેદવાળે! હાય છે ? ( गोयमा ! ) हे गौतम! ( इत्थीवेयए वा होज्जा, पुरिसवेयए वा होज्जा, पुसि नपुंगवेयए वा होज्जा ) ते श्रुत्वा भवधिज्ञानी स्त्रीवेदवाणी या होय छे, પુરુષ વેદવાળા પણ હાય છે અને પુરુષનપુંસક વેદવાળા પણ હોય છે. પરન્તુ તે નપુ ́સક વેઢવાળા હાતા નથી, ( से णं भंते! सकलाई होज्जा, अकसाई वा होज्जा ? ) डे लहन्त ! श्रुत्वा अवधिज्ञानी शुं सपायी होय हे अषायी होय छे ? ( गोयमा ! ) डे गौतम ! ( सकसाई वा होज्जा, अकलाई वो होज्जा ) ते श्रुत्वा अवधिज्ञानी साषायी या होय छे भने अषायी य होय छे. ( जइ अकलाई होज्जा, किं उवसंतकसाई होब्जा, खीणकसाई होज्जा ) हे लन्त ! ले ते श्रुत्वा भवધિજ્ઞાની અકષાયી હૈાય છે, તે શું તે ઉપશાન્ત કષાયવાળા હાય છે કે ક્ષીણુ

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