Book Title: Bhagwati Sutra Part 07
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 730
________________ ७१० केवविक्तता भगवती सूत्रे पुनरमाह - ' से णं भंते ' इत्यादि । मूलम् - से णं भंते! केवलिपन्नत्तं धम्मं आघवेज वा पण्णवेज्ज वा परूवेज्ज वा ? तो इणट्टे समट्ठे णण्णत्थ एगणाएण वा एगवागरणेण वा । सेणं अंते ! पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा?, णो इणट्टे समहे, उवदेसं पुण करेज्जा | से णं भंते! सिज्झइ, जाव अंतं करेइ ? हंता । सिज्झइ जांव अंतं करेइ ॥ सू० ४ ॥ छाया - स खलु भदन्त ! केवलिपज्ञप्तं धर्मम् आख्यापयेद् वा, मज्ञापयेद् वा, प्ररूपयेद् वा ? नायमर्थः समर्थः, नान्यत्र एकज्ञातेन वा, एकव्याकरणेन वा । स खलु भदन्त ! प्रत्राजयेद् वा, मुण्डयेद् वा ? नायमर्थः समर्थः, उपदेशं ( केवलवरनाणंसणे समुपपन्ने ) केवलज्ञान और केवल दर्शन उत्पन्न हो जाते हैं || सू० ३ ॥ केवलिवक्तव्यता ( से णं भंते! केवलिपनत्तं धम्मं आघवेज्जा वा) इत्यादि । सूत्रार्थ - ( से णं भंते ! केवलिपन्नत्तं धम्मं आघवेज वा, पण्णवेज वा पवेज्ज वा ) हे भदन्त ! यह केवली केवलिप्रज्ञप्त धर्म का कथन करता है क्या ? उसे प्रज्ञापित करता है क्या ? उसकी प्ररूपणा करता है क्या ? ( णो इट्ठे समट्टे णण्णत्थ एगणारण वा एग वागरणेण वा ) हे गौतम! एक उदाहरण और एक प्रश्न के उत्तर देने के सिवाय यह अर्थ समर्थ श्रड ४२ना३', " पडिपुन्ते " प्रतिपूर्य मे " केवलवरनाणदंसणे समुपपन्ने " देवलज्ञान भने ठेवणदर्शन उत्पन्न थ लय छे । सू० ३ ॥ કેવલિ વક્તવ્યતા— " से णं भंते ! केवलिपन्नत्त धम्मं आघवेज्ज वा" इत्यादि. सूत्रार्थ - ( से णं भंते! केवलिपण्णत्त धम्म आघवेज्जवा, पण्णवेज्जवा, परूवेज्जवा ? ) हे लहन्त! ते ठेवणज्ञानी शुं देवविप्रज्ञम धर्म अथन उरे छे ખરે ? તેને પ્રજ્ઞાપિત કરે છે ખરા ? તેની પ્રરૂપણા કરે છે ખરા ? ( નો हट्टे समट्ठे पण्णत्थ एगणपण वा एग वागरणेण वा ) डे गौतम । भे द्वार

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