Book Title: Bhagwati Sutra Part 07
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 738
________________ ટે भगवतीसुत्रे गौतम ! अश्रुत्वा केवली ऊर्ध्वम् ऊर्ध्वलोके वा भवति, अधः - अधोलोके वा भवति, तिर्यग्लो वा भवति । 'उड होज्जमाणे सहावर - विगडाबड़-गंधावइमालवंतपरियाएसु वट्टवेयड्डूपन्त्रएस होज्जा ' ऊर्ध्वम् ऊर्ध्वलोके भवन शब्दापातिविकटापाति - गन्धापाति- माल्यवन्तपर्यायेषु एतच्चतुरभिधानेषु वृत्तवैतादयपर्वतेषु भवति । तेषु च चतुर्षु ऊस्थानेषु तस्य अश्रुत्वा केवलिनः आकाशगमनforeम्पन्नत्वेन तत्र गतस्य केवलज्ञानोत्पादसद्भावे सति स्थितिः संभवति ' साहरणं पडुच्च सोमणसवणे वा, पंडगवणे वा होज्जा ' संहरणं प्रतीत्य संहरणाहोज्जा ) वह अश्रुत्वा केवली उर्ध्वलोक में भी होता है, अधोलोक में भी होता है और तिर्यग लोक में भी होता है। उडूं होज्जमाणे सद्दावर, farstar, गंधावर, मालवंतपरियारसु वहवेयपच्यएस होज्जा ) यदि वह उर्ध्वलोक में होता है तो शब्दापातिवृत्तवैताढ्य में विकटापातिवृतवैताढ्य में गन्धापाति वृत्तवैनाढ्य में या माल्यवन्त वृत्तावैतादयमें इन वृत्त वैताढ्य पर्वतों में होता है । तात्पर्य कहने का यह है कि इन चार ऊर्ध्वस्थानों में अश्रुत्वा केवली का सद्भाव इस तरह से पाया जाता है कि अश्रुत्वा केवली को आकाशगमनलब्धि का सद्भाव तो होता ही हैऐसी स्थिति में आकाशगमन लब्धि की सहायता से आकाश में गमन करते समय यदि उसको केवलज्ञान हो जाता है तो इन स्थानों में उसका सद्भाव वहां स्थिति हो जाने की वजह से पाया जाता है | ( साहरणं पडुच्च सोमणसवणे वा पंडगवणे वा होज्जा ) संहरण की अपेक्षा से - महावीर अलुना उत्तर— " गोयमा ! " हे गौतम! ( उड्ढ होच्जा अहे वा होज्जा, तिरियं वा होज्जा ) ते अश्रुत्वा ठेवली असाम्भां पशु होय छे, अघोषोऽभां पशु होय छे भने तिर्यो भांप होय छे. ( उइट होज्जमाणे सहावर, विडावइ, गंधावर, मालवंत परियारसु वट्टवेयढपन्वसु होज्जा ) જે તે ઊર્ધ્વલેાકમાં હાય છે, તા શખ્તાપાતિ નામના વૃત્તવૈતાઢયમાં કે વિકટાપાતિ નામના વૃત્તવૈતાઢયમાં, કે ગંધાપાતિ વૃત્તવૈતાઢયમાં કે માલ્યવન્ત મૃત્તવૈતાઢયમાં, આ વૃત્તવૈતાઢય પ°તામાં હોય છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે આ ચાર સ્થાનામાં અશ્રુત્વા કેવલીના સદ્ભાવ આ રીતે સભવી શકે છે-અશ્રુત્વા કેવલીમાં આકાશગમનલશ્વિને સદ્ભાવ તા અવશ્ય હાય છે. એવી સ્થિતિમાં આકાશગમનલબ્ધિની સહાયતાથી આકાશમાં ગમન કરતી વખતે તેમને કેવળજ્ઞાન ઉત્પન્ન થઈ જાય તે તે સ્થાનેમાં તેમના સદ્ભાવ त्यांनी स्थितिनी अपेक्षाओ सलवी श छे. ( साहरणं पडुच्च सोमणसवणे या पंढगवणे वा होज्जा ) सरगुनी अपेक्षाओ मे देवादि द्वारा ले तेनुं

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