Book Title: Bhagwati Sutra Part 07
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 725
________________ प्रमैयचन्द्रिका टी००९उ०३१ २०३अश्रुत्वायधिशानिनो लेश्यादिनिरूपणम् ७०५ हितो तिरिक्खजोणियभवग्गहणेहितो अप्पाणं विसंजोएड' अनन्तेभ्यः तिर्यग्योनिकभवग्रहणेभ्यः आत्मानं विसंयोजयति विमोचयति, 'अणंतेहितो देवभवग्गहणे हितो अप्पाणं विसंजोएइ ' अनन्तेभ्यो देवभवग्रहणेभ्यः आत्मानं विसंयोजयति 'जाओ वि य से इमाओ नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवगइनामाओ चत्तारि उत्तरपयडीओ' याः अपि च ताः इमाः नैरयिक-तिर्यग्योनिक-मनुष्यदेवगतिनाम्न्यः, एतदभिधानाश्चतस्रः उत्तरप्रकृतयो नामकर्माभिधानायाः मूलप्रकृतेरुत्तरभेदभूताः सन्ति — तासिं च णं उबग्गहिए अणंताणुवंधी कोहमाणमायालोभे खवेइ ' तासां च खलु चतसृणां नैरयिकगत्याधुत्तरप्रकृतीनाम् चशब्दातिरिक्खजोणियभवग्यहणेहितो अप्पाणं विसंजोएइ) अनन्त तिर्यच भवग्रहणों से अपने को छुड़ालेता है, अर्थात् वह इन अध्यवसायों के प्रभाव से मर कर तिर्थचगति में नहीं जाता है, (अणंतेहिं मणुस्सभवग्गहणेहिंतो अप्पाणं विसंजोएइ) वह अनन्त मनुष्य सम्बन्धीभवनहणां से अपनी अस्मा को छुड़ा लेता है (अणंतेहिं देवभवरगहणेहितो अप्पाणं विसंजोएड) अनन्त देवसंबंधी भवग्रहणों से अपने को छडा लेता है। (जाओ वि य से इमाओ नेरइयतिरिक्खजोणियमणुस्स देव गइनामाओ चत्तारि उत्तरपयडीओ) तथा इसकी जो ये नरक, तिर्थच, मनुप्य और देवगति नाम की चार मृल नामकर्म की उत्तरप्रकृतियां हैं सो (तासिं च णं उवग्गहिए.) इन प्रकृतियों के तथा (च) शब्द से गृहीत अन्य प्रकृतियों के औपग्रहिक-आधारभूत ( अणंताणु गगहणेहि तो अप्पाणं विसंजोएइ) मन त तिय माथी पाताना मात्माने श्यावी से छे. ( अणतेहि मणुस्सभवगाहणेहि तो अपाणं विसजोएइ) मनात भनुष्य समधी महथी पाताने मुद्रत ४२ छ, ( अणतेहिं देवभवग्गहणेहि तो अप्पाणं विसंजोएइ ) मने मनत हेक्समधी सवयहाथी पाताना मात्माने મુક્ત કરી દે છે. એટલે કે આ અધ્યવસાયોના પ્રભાવથી તે જીવ મરીને નારક, તિર્યંચ, મનુષ્ય કે દેવગતિમાં જતો નથી. (जाओ वि य से इमाओ नेरइयतिरिक्खजोणिय मणुसदेवगइनामाओ चत्तारि उत्तरपयडीओ) तथा तनी २ न२४, तिय, मनुष्य भने हेवाति नामनी या२ भूख नभनी उत्तर प्रतिय। छे, " तासिं च णं उवग्गहिए" તે પ્રકૃતિના તથા “ર” પદથી ગૃહીત અન્ય પ્રકૃતિના ઔપગ્રહિક (आधारभूत ) ( अण ताणुवंधी कोहमाणमायालोभे खवेइ ) मनन्तानुगधी औष, मन, भाया भने ४३५ ४ायोना क्षय ४२ छ, ( अणताणुब धी कोहमाण भ० ८९

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