Book Title: Bhagawan Parshwanath Part 01
Author(s): Kamtaprasad Jain
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 10
________________ पुरोहित विश्वभूति । [५ स्थामें तकलीफ नहीं दूंगा । तुम्हारी आत्माका हित होगा वही उपाय करूंगा। तुम चाहो तो आनन्दसे पुत्रोंके साथ रहो और धर्म ध्यान करो ! अगर मेरे बिना यह घर फीका जंचने लगे तो दिगंबर गुरुके चरणोंके प्रसादसे आत्मकल्याण करनेका मार्ग ग्रहण कर लो ! देखो राजकुमारी राजुलने तो कुमार अवस्था में ही आर्थिका व्रत धारण किये थे और दुद्धर तपश्चरण करके स्त्रीलिंग छेदकर स्वर्गीमें देवोंके अपूर्व सुखोंका उपभोग किया था ! सो अब जैसी तुम्हारी इच्छा हो । अनूदर पतिदेव के इन मार्मिक वचनोंको सुनकर चुप होगई ! उसकी बुद्धि में ऊहापोहात्मक विचारोंकी आंधी आगई ! जान गई कि मनुष्यका नरजन्म सफल बनाने के लिये मोक्षसाधनका उपाय करना परमोपादेय कर्तव्य है ! इसी कारण वह पतिदेव के निश्चय में और अधिक बाधा डालने की हिम्मत न कर सकी । प्रिय पाठकगण, यह आजसे बहुत पुराने जमाने की बात है । इतिहास उसके आलोकमें अभी पहुंच नहीं पाया है ! पर है यह इसी भरतक्षेत्रकी बात ! इसी भरतक्षेत्र के आर्यखंडमें सुरम्य देशके मनोहर नगर पोदनपुर में यह घटना घटित हुई थी । यह पोदनपुर बड़ा ही समृद्धशाली नगर शास्त्रोंमें बतलाया गया है । यहां जैनधर्मकी गति भी विशेष बताई गई है। यहांके राजा परम नीतिवान नृप अरविंद थे। इन्हीं राजाके वयोवृद्ध मंत्री पुरोहित विश्वभूति था । अनूदरि इनकी पत्नी थी। वृद्धावस्थाको निकट आया जानकर इस विवेकी नर - रत्नने आत्मध्यान करना इष्ट जाना था ! इसी अनुरूप अपनी पत्नीको समझा बुझाकर उसने जिनदीक्षा ग्रहण करनेकी

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