Book Title: Barah Bhavana Ek Anushilan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 11
________________ बारहभावना : एक अनुशीलन और जिनवरस्य नयचक्रम् (पूर्वाद्ध) के रूप में पुस्तकाकार प्रकाशित होकर स्थाई रूप धारण कर चुके हैं, अनेक भाषाओं में जन-जन तक पहुंच चुके हैं। ___ 'जिनवरस्य नयचक्रम्' के पूर्ण होने के बाद 'बारह भावना : एक. अनुशीलन' लेखमाला आरंभ करने का संकल्प तो पहले से ही था; पर जब 'आत्मधर्म' ने विषम परिस्थितियों में वीतराग-विज्ञान' का रूप धारण किया तो अनुभव किया गया कि इन विषम-स्थितियों में पत्र के आरंभ में ही संपादकीयों के रूप में नयचक्र जैसा जटिल विषय चलने देना पत्रिका के प्रचार-प्रसार के हित में उचित नहीं है। मेरे अनन्य सहयोगी पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट के सुयोग्य मंत्री श्री नेमीचन्दजी पाटनी का अनुरोध तो था ही। परिणामस्वरूप 'जिनवरस्य नयचक्रम्' लेखमाला को बीच में ही रोककर सितम्बर १९८३ में वीतराग-विज्ञान के संपादकीयों के रूप में बारह भावना : एक अनुशीलन' लेखमाला आरंभ की गई, जो विगत अंक (मार्च १९८५ ई.) में ही समाप्त हुई है। आत्मधर्म व वीतराग-विज्ञान के आरंभ से ही प्रथम पृष्ठ पर हम एक आध्यात्मिक भजन देते रहे हैं। 'बारह भावना : एक अनुशीलन' लेखमाला आरम्भ करते समय विचार आया कि अनुशीलन के साथ-साथ बारह भावनाएँ पद्य में भी लिखी जावें और उन्हें अनुशीलन के साथ-साथ प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित किया जावे। उक्त सन्दर्भ में बहुत पहले लिखी बारह भावनाएँ बहुत खोजी, पर हमारी यह खोज निष्फल ही रही; पर अनुशीलन से उत्पन्न विशुद्धि के बल पर मैंने पुनः पद्यमय बारह भावनाएँ लिखने का संकल्प किया। परिणामस्वरूप यह पद्यमय बारह भावनाएँ एवं बारह भावना : एक अनुशीलन' आपके समक्ष सहज ही प्रस्तुत हो गया है। __ अन्य संपादकीय लेखमालाओं के समान अब यह कृति भी पुस्तकाकार के रूप में प्रस्तुत है। १. अब यह कृति पूर्ण होकर परमभाव प्रकाशक नयचक्र के रूप में उपलब्ध है।

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