Book Title: AradhanasaraSatika
Author(s): Devsen Acharya, Ratnakirtidev
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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टीकासहितः।
छंडियगिहवावारो त्यक्तगृहव्यापारः त्यक्ता अनंतसंसारकारणकारिव्यापारावारपारगसहजशुद्धचिच्चमत्काररसास्वादविशेषव्यापृतपरमात्मपदार्थविलक्षणा असिमसिकृषिपशुपाल्यवाणिज्यादयो गृहव्यापारा येनासौ । पुनः कथंभूतः। विमुक्कपुत्ताइसयणसंबंधो विमुक्तपुत्रादिस्वजनसंबंधःजीवियधणासमुक्को जीवितधनाशामुक्तः स्वकीये काये ममत्वपरिणामवशादिदं मदीयमनेन सार्ध मम विघटनं माभूदित्यभिलाषो जीविताशा इत्युच्यते । निजनिरंजनशुद्धबुद्धकस्वभावस्वसंवेदनज्ञानकधनविलक्षणधनधान्यसुवर्णादिपरिग्रहग्रहाभिलाषो धनाशा इत्युच्यते इत्युक्तलक्षणाभ्यां जीवितधनाशाभ्यां मुक्तः परित्यक्तः । आदौ गृहव्यापारान् परित्यज्य पुत्रादिस्वजनसंबंधं मुंचति तदनु जीवितधनाशाद्वयं निरस्य संन्यासा) भवतीत्यर्थः ॥ २४ ॥
एवमर्हस्वरूपं निरूप्य बाल्ययौवनवार्धक्यावस्थात्रये कस्यामवस्थायामुत्तमस्थानस्याहः सपद्यते इति पृच्छंतं प्रति गाथाचतुष्कमाह;जरवग्विणी ण चंपइ जाम ण वियलाइ हुँति अक्खाई। बुद्धीजाम ण णासइ आउजलं जाम ण परिगलई॥२५॥ आहारासणणिदाविजओ जावत्थि अप्पणो णूणं ।। अप्पाणमप्पणोण य तरइ य णिज्जावओ जाम ॥२६॥ जाम ण सिढिलायति य अंगोवंगाइ संधिबंधाई। ज़ाम ण देहो कंपइ मिच्चुस्स भएण भीउव्व ॥२७॥ जा उज्जमो ण वियलइ संजमतवणाणझाणजोएसु । तावरिहो सो पुरिसो उत्तमठाणस्स संभवई ॥ २८॥
कलावयं ।
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