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आलोड़न में, बारम्बार आत्मा ही देह हो गयी है, और देह ही आत्मा हो गयी है। मैंने तुम्हें ज्ञान से नहीं चाहा, प्राण से चाहा है । मेरी देह का रोयां-रोयां आत्मा होकर, तुम्हारे आलिंगन को तड़पा है ।
... आज साफ़ सुन लो मेरे स्वामी, मैंने तुम्हें नितान्त ठोस, सघन, रक्तमांस के शरीर से चाहा है । अपने रक्त के असह्य उत्ताप और देह के कम्पनों और स्पन्दनों से, मैंने तुम्हें आर-पार संवेदित किया है । आज स्पष्ट कहने को जी चाहता है, कि वैशाली तो क्या, तमाम वर्तमान के लोक में, मुझे कोई ऐसा पुरुष न दीखा, जो मेरे योग्य हो सके, जो मेरा पाणिग्रहण कर सके, जो मेरा एकान्त प्रीतम हो सके, मैं जिसकी एकान्तिनी प्रिया या वधू हो सकूँ। तुम्हें छोड़, कभी किसी के लिये मेरे तन-मन में सत्य- काम न जाग सका। सत्य-प्रीति की ऐसी उमड़न, और किसी के लिये मेरे इस कुमारी हृदय को आलोड़ित न कर सकी । अपने समय के एकमेव सूर्य महावीर के अतिरिक्त, आम्रपाली के लिये कोई पुरुष कहीं जन्मा ही नहीं ।
.... सुनो महावीर, मेरी निर्लज्जता अब मेरे नारीत्व की मर्यादा लाँघ कर तुम्हारे सामने आ जाना चाहती है । देखो, देखो, मेरे मूलाधार के मेदुर धरामण्डल में से, यह कैसा उत्तान अम्भोज फूट कर चीत्कार रहा है । कि उसके लिये सारी पृथ्वी को फट कर पानी हो जाना पड़ा है। एक जलप्रलय के बीच, सुनो सुनो... यह कौन तुम्हें पुकार रही है ? कौन तुम्हें खींच रही है ?
...कि कल तुम मेरी राह आने को मजबूर हुए । यह मैं नहीं, मेरी आत्मा नहीं, यह मेरा गर्भ है, चिरन्तन् नारी का गर्भ, जो तुम्हारे तेजस् के अमृत-सिंचन के लिये फूट कर आक्रन्द कर उठा है। हाँ, मैं तुम्हारी एकमेव नारी, ओ मेरे एकमेव पुरुष, मैं केवल तुम्हें अपने गर्भ में धारण करना चाहती हूँ । आम्रपाली का गर्भाधान कर सके, ऐसा अन्य कोई पुरुष इस पृथ्वी तल पर आज विद्यमान नहीं । त्रैलोक्येश्वर का अजित वीर्य ही आम्रपाली झेल सकती है । कामदहन, दुर्दान्त ब्रह्मचारी शंकर के अक्षर वृष्णनिषेक को धारण करने के लिये, केवल पार्वती ही जन्मी थी । और वही दुरत्यय असुर शक्तियों का पृथ्वी से उन्मूलन करने के लिये, देव-सेनापति कुमारस्कन्द को जन्म दे सकती थी । ऐसे किसी कार्तिकेय की माँ होना ही, मेरे नारीत्व की एक मात्र नियति हो सकती है ।
तुम कहोगे, कि पार्वती ने उसके लिये हिमालय के घर जन्म लिया था । और उसने परम शिव के अजेय वीर्य को धारण करने के लिये, सर्वस्व आहुतिनी तपस्या की थी। तपस्या तो मैंने हिमालय में जाकर नहीं की, और ना मैं देवात्मा हिमालय की बेटी होने का सौभाग्य पा सकी। लेकिन
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