Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 387
________________ ४५ · · एक अजेय आत्मविश्वास से वह आप्राण उन्मेषित हो उठा। उसने अपना परम्परागत मंखवेश धारण किया। और एक सवेरे अचानक हालाहला के आम्रकुंज में, प्रति तीर्थंकर भगवान् मक्खलि गोशालक, अपनी वामांगिनी भगवती मृत्तिका हालाहला के साथ व्यासपीठ पर प्रकट हो उठे। हजारोंहजार प्रजाजन, उसके आवाहन से खिंचे चले आये। गोशालक ने अपने जीवनानुभव के अनेक चित्रपट दिखा कर, नियतिवाद को सिद्ध कर दिखाया। जब नियति अटल है, तो मुक्ति भी उसके छोर पर आपोआप ही घटित होगी। तब संयम, तप-त्याग, इन्द्रिय-दमन, देह-दमन सब व्यर्थ है, भ्रान्ति और अज्ञान है। अनर्गल हो कर बेहिचक जीवन को भोगो, सम्पूर्ण निःशेष भोगो। इस भोग में से ही एक दिन योग और मोक्ष स्वयम् प्रकट हो जायेगा। अज्ञानी प्रजाओं को यह अनुभवजन्य सुगम भोगवाद तत्काल अपील कर गया। अद्भुत प्रत्ययकारी सिद्ध हुआ यह भोगवाद का विधायक दर्शन। पलक मारते में सारे पूर्वीय आर्यावर्त में गोशालक एक प्रतितीर्थंकर के रूप में विश्व-विख्यात हो गया। महावीर और बुद्ध अभी कैवल्य प्राप्ति की अपनी चरम तपस्या में ही समाधिस्थ थे। वे लोक के. परिदृश्य पर अभी प्रकट नहीं हुए थे। अभाव के इस महाशून्य में, आधार के लिए भटकती जन-चेतना को गोशालक ने जीने का कारण, आधार, अर्थ और प्रयोजन दे दिया। सो सर्वहारा के वंशधर गोशालक की वाम प्रभुता ने सारे आर्यावर्त के हृदय पर अधिकार जमा लिया। ___ तभी हठात् एक दिन महावीर अर्हन्त सर्वज्ञ हो कर, अपने देवोपनीत समवसरण की गन्धकुटी के कमलासन पर, लोक के मूर्धन्य सूर्य के रूप में प्रकट हुए। उनकी कंवल्य-प्रभा के विस्फोट से गोशालक का प्रतितीर्थंकरत्व आपोआप ही मन्द, म्लान और पराजित होता गया। गोशालक प्रलयांतक क्रोध से उन्मत्त विक्षिप्त हो कर, एक दिन आखिर महावीर के समवसरण में जा पहुँचा। अपनी वामशक्ति के सम्पूर्ण आक्रोश के साथ उसने महावीर को ललकारा। महावीर ने उसका प्रतिकार नहीं किया, वे उसे स्वीकारते ही चले गये। अप्रतिरुद्ध, अनिरुद्ध भाव से वे उसे वात्सल्यपूर्वक आत्मसात् करते ही चले गये। महावीर की ओर से कोई प्रतिरोध न पा कर गोशालक की क्रोधाग्नि अपने चरम पर पहुंच गई। हठात् उसका मणिचक्र फट पड़ा, और उसकी नाभि से अग्निलेश्या की सर्वलोक-दाहिनी महाकृत्या प्रकट हो उठी। गोशालक ने महावीर पर उसका प्रक्षेपण किया। पर वह उन्हें स्पर्श न कर सकी; उनकी तीन परिक्रमा दे कर वह प्रतिक्रमण करती हुई लौट कर गोशालक के भीतर ही प्रवेश कर गई। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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