Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 04
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 388
________________ ४६ उसके उपरान्त गोशालक के भयंकर आत्मदाह, सात दिन-रातों तक उसकी दहन-यातना, अन्तिम साँस तक उसके विद्रोही वाम दर्शन के उच्चार, और हालाहला की गोद में ही उसके अवसान, देवलोक-गमन तक की विशद् कथा तो यथा स्थान आलेखित है ही। यहाँ दो बातें उल्लेख्य हैं। गोशालक जब अपने ही द्वारा प्रक्षेपित अग्निलेश्या की लपटों में जलने और छटपटाने लगा-तो महावीर ने उसे वचन दिया कि वे उसकी जलन, और नरक-यातनाओं में भी उसके साथ ही रहेंगे। दूसरे यह, कि जब हालाहला ने प्रभु को समर्पित होकर उनकी सती हो जाने की बिनती की, तो प्रभु ने उसे स्वीकार न किया। उन्होंने आदेश दिया, कि वह अन्त तक गोशालक के साथ उसकी भार्या और तदात्म सहधर्मचारिणी हो कर रहे । ये दोनों प्रसंग मेरे सृजनात्मक विज़न में से ही आविर्भूत और आविष्कृत विधायक प्रस्थापनाएँ हैं । बिना मेरी किसी पूर्व अवधारणा के ही, सृजन के दौरान ही गोशालक का चरित्र अनायास आज के वाम विद्रोही, प्रक्रुद्ध युवा ( Angry young man ) के रूप में उभरता चला गया है। ठीक आज के मनुष्य के युगानुभव के अनुरूप ही गोशालक नियतिवादी है, अस्तित्ववादी है, नितान्त भौतिक भोगवादी है। आज के अस्तित्ववादी और निःसारतावादी (निहिलिस्ट) दर्शनों की अनिर्वार त्रासदी का वह एक ज्वलन्त उदाहरण और प्रवचनकार है। प्रभुवर्गों के विरुद्ध सर्वहारा वर्ग की वह चूड़ान्त चीत्कार और दुर्दान्त क्रान्तिघोषणा है। विपथगामी वाम-शक्ति का न तो वह मूर्तिमान अवतार ही है। आज के मूलोच्चाटित, गृहहारा, सन्दर्भहीन निवंश हिप्पी का मानो वह पूर्वज प्रोटोटाइप-स्वरूप उत्कट उच्छृखल अघोरी कापालिक है। और हिप्पियों की तरह ही कहीं गहरे में उसके भीतर एक अदम्य आत्म-काम और मुमुक्षा भी जागृत है । इस धरती के मांस-माटी के भीतर ही, इसके विषयानन्द के भीतर ही, वह मुक्त आत्मानन्द प्राप्त करना चाहता है। इस कथानक के उपसंहार में, जब महावीर को गोशालक के देहान्त का सम्वाद मिला, तो प्रभु ने उसे एक महान और चरम स्वीकृति ही प्रदान की। उसकी उग्र तपस्या-वृत्ति, उसकी अनिर्वार ज्ञान-पिपासा, तथा उसकी आप्तकामी महावासना का उन्होंने अभिनन्दन किया। उसके वामशक्तिगत विद्रोह, और उसके प्रति-तीर्थंकरत्व के क्रान्तिकारी दावे की सचाई, औचित्य और न्याय्यता को भी महावीर ने स्वीकार किया। उसे अपने समय का एक प्रचण्ड प्रतिसूर्य माना। और अन्ततः यह भी कहा कि--'आर्य मक्खलि गोशालक मेरे आगामी युग-तीर्थ की अनिवार्य वाम-शक्ति और ऐतिहासिक ऊर्जा के पूर्वाभासी ज्योतिर्धर थे। · · इस तरह महावीर ने उन्हें अपना ही Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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