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'गोशालक द्वारा प्रक्षेपित अग्नि-समुद्घात तो मानुषोत्तर था, भगवन् । उस महाकृत्या की सामर्थ्य, प्रभ ?'
'अर्हत् पर प्रक्षेपित वह महाकृत्या अपनी दाहिका शक्ति से वत्स, अच्छ, कुत्स, मगध, मंग, वालव, कोशल, पाड़, लाट, वज्रि, मालि, मलय, वाधक, अंग, काशी और सह्यगिरि के उत्तर-प्रदेश को एक-बारगी ही जला कर भस्म कर देने में समर्थ थी, आर्य गौतम !' ___'अघात्य अर्हन्त से तो वह पराजित हो गयी, लेकिन उसके प्रत्यावर्तन को गोशालक अकेला कैसे पचा पाया, प्रभु ?' _ 'उग्र तपस्वी थे आर्य गोशालक। वे जन्मना मुमुक्ष थे। स्वभाव से ज्ञानार्थी और आत्मार्थी थे। उनकी अदम्य मुमुक्षा ही, वाम हो कर उनकी दुर्दान्तं शक्ति बन गयी थी। सच ही वह महावीर का मृत्तिका-पुत्र था, और अग्नि-पुत्र भी। इसी द्वंद्व को झेल कर, उसने मानव-मुक्ति के अभियान में अगला डग भरने का विक्रान्त दुःसाहस किया था। उसके लिये उसने अपने को ही हवन कर दिया !' , 'उनकी यह आहुति फलेगी, प्रभु ?'
'महावीर के आगामी युग-तीर्थ में, मृत्तिका बार-बार अपनी प्यास का उत्तर मांगेगी। वह उत्तर जगत् को, गोशालक की राह, महावीर से मिलेगा। अस्तित्त्ववादी आजीवक दर्शन, आगामी काल में ज्ञान का एक नया वातायन खोलेगा। इसी से इतिहास में गोशालक सदा याद किये जायेंगे।' - 'आर्य गोशालक की अन्तिम नियति क्या होगी, भगवन् ?'
'अनेक योनियों में उत्थान-पतन की यात्रा करते हुए गोशालक, कालक्रम से विदेह क्षेत्र में दृढ़प्रतिज्ञ नामा मुनि के भव से कैवल्य-लाभ कर, नित्य बुद्ध सिद्धत्व को प्राप्त हो जायेंगे !'
"ठीक उसी क्षण अचानक स्त्री-प्रकोष्ठ में से उठ कर हालाहला प्रभु के सम्मुख आ, भुसात् प्रणिपात में समर्पित हो गयी। उसे सुनायी पड़ा : "
'आर्या मृत्तिला हालाहला, तुम मुक्तात्मा की जनेता हो कर, महावीर को बारम्बार मृत्तिका में ढालने वाली परम लोक-माता हो गयीं !'
और देवी हालाहला भगवती चन्दन बाला की कल्प-छाया में श्री भगवान् की सती हो गयी।
जयध्वनि हुई : 'मुक्तात्मा की जनेता मृत्तिका-माता देवी हालाहला जयवन्त हो !'
श्री भगवान् सन्मुख सोपान से उतर कर चले, तो हालाहला प्रभु के चरणों में लोट गयी। अन्तरिक्षचारी अर्हत के चरण उस मृत्तिका को अनायास सहलाते हुए आगे बढ़ गये।
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