________________
५५
तुम ऐसा नहीं कर सकते मेरे साथ ! तुम इतने कुत्सित, असुन्दर नहीं हो सकते । नहीं, यह तुम्हारी ऊष्मा नहीं, यह तुम्हारा मदन नहीं । यह तुम्हारी
-गंध नहीं । यह तुम्हारा बाहुपाश नहीं । मैंने उछल कर एक ठोकर मारी इस छलिया बहेलिये को । और वह अन्तरिक्ष में जाने कहाँ विलीन हो गया ।
... और तभी एक देव मेरे चरण प्रान्तर में आ पड़ा । विह्वल अनुताप से रो कर क्षमा याचना करने लगा : 'मैं संगम देव, तुम्हारा शरणागत हुआ, देवी ! मेरे पापों का अन्त नहीं । अन्तिम नरक में भी मुझे ठौर नहीं । मैंने लोकालोक के नाथ महावीर के अनाहत पराक्रम और पौरुष को पराजित कर, देवों की सत्ता को मृत्युंजयी अर्हत् पर स्थापित करना चाहा । और मैंने देखा, कि देवी आम्रपाली पर मेरे सारे प्रहार उतर रहे हैं । और प्रभु ? प्रभु तो देवी के हृदय के अनाहत चक्र में, अचल कायोत्सर्ग में लीन हैं। देवी, मुझे क्षमा न करें, मुझे निरस्तित्व कर दें !' और सहसा ही वह संगम देव, मेरी पगतलियों में जाने कहाँ लुप्त हो गया ।
ओ मेरे एकमेव काम - पुरुष, विचित्र है तुम्हारी लीला । जानती हूँ, अब कभी तुम्हारा श्रीमुख - दर्शन भी मुझे नसीब न होगा। लेकिन मैं मरण और विनाश की घाटियों में तुम्हारी सहचरी होकर रह गई । तुम मारजयी हुए। लेकिन मैं ? तुम्हारी तपस्या के सारे अघमर्षण अग्नि स्नानों में तुम्हारे साथ जल कर भी, मैं तो निरी कामिनी ही रह गयी । निश्चय ही, तुमने सचराचरा सृष्टि के काम को जय किया । लेकिन याद दिलाती हूँ, आम्रपाली के काम पर अभी तुम विजय नहीं पा सके हो । मेरे आम्रकूट की मँजरियाँ अभी भी अछूती हैं। तुम्हारी त्रिभुवन जयी चरण-चाप, अभी उनका भंजन नहीं कर सकी है। सुनो, जानो, ओ त्रिगुणातीत, त्रिपुरारि परशिव, सदाशिव, मृत्युंजयी महेश्वर : महावीर ! तुम्हारे द्वारा भस्मीभूत किया गया काम, तुम्हारी इस पार्वती की सर्पिल कंचुकी में नवजन्म कर अभी भी सुरक्षित है । उसको पूर्णकाम किये बिना, तुम्हारे युग-तीर्थ की नूतन सृष्टि का उत्थान और प्रवर्त्तन सम्भव न हो सकेगा ।
हाय, मेरी वासना सृष्टि के कण-कण में सुलग रही है । और देखो, देखो, मेरे मूलाधार की पृथ्वी, कमल कोरक की तरह फूटने को आकुल हो उठी है । इसकी मुद्रित कणिका में वैश्वानर धधक रहे हैं। क्या तुम कभी नहीं आओगे मेरे पास ? लेकिन अनिर्वार है मेरा यह आत्म-स्फोट । यह मृत्यु से भी बाधित नहीं । तुम सर्वज्ञ होकर भी, त्रिकाल - ज्ञानी होकर भी, क्या इस अनिवार्यता को नहीं देख रहे ? हाय, मेरी त्रिवली टूटी जा रही है '
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org