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जान्युआरी- २०१९
चडीय संमेतगिरि सुद्ध आतम धरी, करीय संलेहण मासभत्त, छेदीय कम्म अड क्षय करी जिनवरू, आसय सुक्ख सिवपुरीय पत्त; अजर अगोचर अमर अक्षर परं-परमपद निम्मलऽणंतनाणी, सिद्ध अलेख अरूपी निरंजन, निरुपम गुण इकतीस प्राणी! ९ इणि परइ थंभणपुरइ भेट्यउ पास थंभण जिणवरो, घन-नील-रुचि-तनु नाग-लंछन काय नव कर मनहरो; श्रीकनकसोम मुणिंद सहगुरु परम महिमा-सागरो, तसु सीस रंगकुसल सुजंपइ सदा संघ-सुखाकरो. १०
॥ इति श्रीस्तंभनक पार्श्वनाथस्तवनं समाप्तम् ॥
७. मुनि-गुणसौभाग्य-रचित
थम्भण-पार्श्वनाथ-स्तवन वंदीउ वंदीउ रे खंभनयरनो राजिउ,
___ थंभण पासजी रे बहु गुण गेह वीराजीउ; ज्ञान दरिसण रे सूरिजनी परे दीपउ,
वर संयम रे करिय कर्म-दल जीपतउ. १ रूअडउ सोहइ रे वामा-कूखिई हंसलउ,
जन-मन मोहइ रे सोभागी कुंअर भलउ; परिणावि रे बल करी कूअरिं प्रभावती,
___ परिहरि राजरिद्धि रे लोग त्यजी हूआ आयती. २ जसु सेवइ रे सूरवर नरपती राजीउ,
गजपति-गेलि रे चालइ जिन-पति राजीउ; जिनजी राओ रे सूरपति, गुरुहिं वखाणीओ,
त्रीभूवन सारे रे थंभण पास सू जाणीओ. ३ धरणिन्द्रराजिई रे पास जिणेसर संथुणो,
गणधरदेवि रे सूत्र मझारि वखाणीओ; पालइ जनजी रे आण खरी तुह नीगली,
कवीअण भाखइ रे ते भवीअण आस्था फली. ४