Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 131
________________ १२४ अनुसन्धान-७६ कप्पे देवा असंखेज्जगुणा' ऐसा पाठ मुद्रित हुआ है किन्तु यह सम्यक् नहीं है क्योंकि खम्भात की ताड़पत्रीय हस्तलिखित प्रति जिसे स्वयं मलधारी हेमचन्द्रसरि द्वारा लिखित माना जा रहा है, उसमें यहा 'संखेज्जगणा' ही पाठ है, 'असंखेज्जगुणा' नहीं । जीवसमासवृत्ति की पाटण की कागदीय हस्तलिखित प्रति (पाकाहेम ६९५१) में भी यहाँ संखेज्जगुणा ही पाठ है। साथ ही गाथा २७४ की व्याख्या में आगत 'सङ्ख्येयगुणाः' पाठ से भी यह स्पष्ट है कि मलधारी हेमचन्द्रसूरि महादण्डक में संख्येयगुण पाठ ही मानते थे, असंख्येयगुण नहीं । तात्पर्य यह है कि जीवसमास (गाथा १५२) की श्री मलधारी हेमचन्द्रसूरि कृत वृत्ति में आगत श्रीमत् प्रज्ञापना सूत्र के इस उद्धरण के आधार से श्री प्रज्ञापना सूत्र की हस्तलिखित प्रतियों में प्राप्त संखेज्जगुणा' पाठ की शुद्धता दृढ़ रूप से संपुष्ट होती है । २ बिन्दु क्रमाङ्क - ४ .श्री भगवती सूत्र शतक १२ उद्देशक ९ में (पाँच देवों के प्रकरण में) अल्पबहुत्व द्वार में भावदेव सम्बन्धी अल्पबहुत्व का संक्षिप्त रूप से निर्देश किया है तथा श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र का अतिदेश (भोलावण) किया गया है । वह पाठ इस प्रकार है "अच्चुए कप्पे देवा संखेज्जगुणा जाव आणते कप्पे संखेज्जगुणा, एवं जहा जीवाभिगमे तिविहे देवपुरिसे अप्पाबहुयं जाव जोतिसिया भावदेवा संखेज्जगुणा' ।। _ - श्री भगवती सूत्र, शतक ९, उद्देशक १२, अन्तिम सूत्र उपर्युक्त पाठ की व्याख्या करते हुए श्री अभयदेवसूरिजी ने श्री जीवाजीवाभिगम सूत्र के प्रकृत पाठ को वृत्ति में उद्धृत किया है । यहाँ भी चतुर्थ देवलोक (माहेन्द्र) के देवों से तृतीय देवलोक (सनत्कुमार) के देवों को 'संख्येयगुणा' बताया है । वृत्तिपाठ इस प्रकार है "अथ भावदेवविशेषाणां भवनपत्यादीनामल्पबहुत्वप्ररूपणयाह - ‘एएसि ण'मित्यादि, 'जहा जीवाभिगमे

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