Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७६
पुरोगामी छे ते तपासनो विषय बने.
'अषाढाभूति धमाल'मां बे ह.प्र.नो उपयोग थयो छे. जे प्रतिना आधारे लिप्यन्तर थयुं छे ते प्रति जूनी छे पण अशुद्ध छे, ज्यारे जेमांथी पाठान्तर लीधा छे ते प्रति शुद्धतर छे. वाचनामां केटलाक शब्द अशुद्ध छे, ए शब्द पाठान्तरमा शुद्ध मळे छे. क. ५४मां 'आयाध' अशुद्ध छे, सम्पादिकाए तेथी (आयुध) कौंसमां सूचवेल छे; ज्यारे नीचे पाठान्तरमां 'अगाध' नोंधायुं छे. ए पाठ साचो छे. आवा संयोगोमां अन्य प्रतमां शुद्ध पाठ मळतो होय ते मूळ वाचनामां लइ, आधारभूत प्रतिनो पाठ, पाठान्तर तरीके नोंधवो जोईए. ज्यां शुद्ध । अशुद्धनो निर्णय न थई शकतो होय त्यां भले आधारभूत प्रतिनो पाठ उपर रहे. अन्यथा बिनजरूरी 'सुधारा' के कल्पनाओ करवानी थाय; जेम अहीं (आयुध)नी कल्पना ऊभी थई छे, तेम. ए ज कडीना चोथा चरणमां 'कारिची' छे त्यां वाचनभूल जणाय छे, 'कारिमी' शब्द होइ शके. क. ५३मां 'भखचउ (भयउ)' छे, अशुद्ध होवाथी 'भयउ' सम्पादिकाए विचार्य छे, ज्यारे नीचे पाठान्तरमां 'भरत थयो' साचो पाठ हाजर छे. टिप्पणमां शुद्ध पाठो घणां मळे छे. वस्तुतः अहीं लिप्यन्तर माटे आधारभूत मुख्य प्रति कइ स्वीकारवी - ए निश्चित करवानो प्रश्न छे.
'अंजनासुन्दरी-पवनंजय रास' - आ बृहत् कृतिनो प्रथम खण्ड आ अंकमां प्रगट थयो छे. रासक्षेत्रे जैन मुनिओनुं प्रदान घणुं छे. रासोनुं प्रयोजन वार्तारस द्वारा धर्मबोध आपवानो हतो. उदात्त भावनाओ पुष्ट करवानो उद्देश मुख्य रहेतो. श्रोतावर्ग मिश्र रहेतो. आथी काव्यात्मकता नहि पण वर्णनात्मकता अने घटनातत्त्व मुख्य रहेता. प्रसंगोपात्त विविध विषयोनी जाणकारी गूंथी लेवाती. प्रस्तुत रास ए कक्षानो छे. कविए पोते जणाव्युं छे तेम, आ तेमनी प्रथम रचना छे. कविनी कचाश क्यांक छती पण थाय छे. ढा. १, क. १६: 'पाखलि फिरतो प्रौढ दुरंग' - अहीं कविए प्रास खातर 'दुर्ग' ने 'दुरंग' बनावी दीधो छे. शब्दो साथे आटली बधी छूट लेवी पडे ए कविनी कचाश गणाय. सम्पादिकाए नोंध्युं छे के ढालनी अन्तिम कडीमां कविए राग/देशीन नाम समाव्युं छे. वस्तुतः आ रीते राग/देशीना नाम गूंथी लेवानी एक परिपाटी ज स्थापित थई हती. समयसुन्दरजी जेवा मोटा कविओनी कृतिमां आ पद्धति जोवा मळे.

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