Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-७६
विहंगावलोकन
- उपा. भुवनचन्द्र
अनुसन्धाननी यात्रा ७५मा पडाव पर पहोंची तेनी उजवणीरूपे विशेषाङ्क प्रगट करवामां आव्यो. विशेषाङ्कनी सामग्रीने स्वाध्यायखण्ड अने सम्पादनखण्ड - एम बे विभागमां प्रकाशित करवामां आवी. बन्ने भाग दळदार अने समृद्ध बन्या छे.
अनुसन्धान जैनविद्या अने भारतीयविद्या (jainology अने Indology)- सामयिक छे. आ प्रकारनां सामयिको चलाववां ए पडकारसमुं कार्य छे. अनुसन्धान २५ वर्ष अने ७५ अङ्क सुधीनी मझल कापे छे, एटलुं ज नहि, आन्तर-बाह्य रीते उत्तरोत्तर विकास पामतुं गयुं छे, ए घटना तेना सम्पादक-प्रकाशकने माटे गर्व अने परितोषनी होय ए सहज छे, वधुमां विद्याव्यासंगी अने विद्यारसिक जनोने माटे पण रोमहर्षक ठरे..
अने ए तथ्य, स्वाध्यायखण्डमां प्रकाशित विज्ञ अने विवेचक जनोना लेखोमां मुखर बनी उपसी आवे छे. अनुसन्धानना मूल्य, महत्त्व अने स्वरूपनां लेखांजोखां तज्ज्ञ विद्वानोए तथा सुज्ञ विद्यारसिकोए दिल खोलीने कर्या छे.
खण्ड - १ सम्पादकीयमा सम्पादकश्रीए सम्पादनकार्यने पुरातत्त्वीय खोदकाम साथे सरखावी, एमांथी ऊभरी आवता तथ्योनां रसप्रद उदाहरणो आप्यां छे. एक उदाहरण श्रीगौतमस्वामीना रासनी एक पंक्तिनुं छे. 'तीरि/तीर तरंडक जिम ते वहता' - एवो पाठ छपातो आव्यो छे अने गवातो आव्यो छे. आ पाठमां असंगति छे. श्री नाहटाजीए साचो पाठ शोधेलो. ए पाठ छे - 'नीरि तरंडक जिम ते वहता'. पाणीमां होडी सरती होय तेम देवो आकाशमांथी पसार थता हता - आवी सुन्दर चित्रात्मक उपमा भ्रष्ट पाठने लीधे काव्यने उपकारक थवाने बदले बाधक बने एवं रूप लई बेठी हती. 'नीरि'ने बदले वांचनारे तीरि/तीर वांच्यु अने पछी 'अंधो अंध पुलाय...' (हजी पण आ भूल पुनरावर्तित थती रहेशे एवी खातरी आपणे राखी शकीए!)

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