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जान्युआरी- २०१९
१३१ कप्पे देवा असंखेज्जगुणा' ... 'सोहम्मे देवा असंखेज्जगुणा' (पत्रांक १८८b) - इस प्रकार दोनों स्थलों पर अशुद्ध पाठ है । (इस वृत्ति की
हस्तप्रतें द्रष्टव्य हैं ।) (iv) भगवतीसूत्रावचूरिः' के नाम से मुद्रित भगवती सूत्र की प्राचीन व्याख्या
में (व्याख्या संक्षिप्त होने से) अल्पबहुत्व सम्बन्धी चर्चा ही नहीं की
गई है। ७. (i) ज्ञातव्य है कि षट्खण्डागम और उसकी धवला टीका में भी चौथे
देवलोक के देवों से तीसरे देवलोक के देवों को संख्येयगुण ही माना है । यथा :
"माहिंदकप्पवासियदेवा असंखेज्जगुणा ।
सणक्कुमारकप्पवासियदेवा संखेज्जगुणा ॥" - षट्खण्डागम, द्वितीय क्षुद्रकबन्ध, ग्यारहवें अल्पबहुत्वानुगम के पश्चात् वर्णित महादण्डक, सूत्र २८-२९ (षट्खण्डागम २/११-२/२८-२९) पुस्तक ७, पृ. ५८२, सम्पादक - पं. फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्री
___"को गुणगारो? संखेज्जा समया" - षट्खण्डागम २/११-२/२९ पर धवला टीका (पुस्तक ७, पृ. ५८३)
सम्पादक - पं. फूलचन्द्र सिद्धान्त शास्त्री (ii) 'सत्पदादि प्ररूपणा' (प्ररूपक - आ. श्री जयघोषसूरिजी, लेखक -
आ. श्रीअभयशेखरसूरिजी) नामक पुस्तक में पृष्ठ १४६ (प्रथमावृत्ति, वि.सं. २०५३) पर लिखा है कि
"श्री पन्नवणाना प्रत-पुस्तकमां चोथा देवलोक करतां त्रीजा देवलोकना देवो असंख्यगुण होय एम मूल अने वृत्तिमा छपायु छे. पण ए अशुद्धि जाणवी. कारण के चोथो देवलोक अने त्रीजो देवलोक बन्नेमा सूचिश्रेणिना भाजक तरीके अगियारमुं वर्गमूळ ज कडं छे, भिन्न-भिन्न रकम नहीं. माटे संख्यातगुण सम्भवित छे, असं.गुण नहीं।"
___C/o. संपतराज रांका B/20, ओम सांई निवास, मद्रासी राममन्दिर सामे,
सुभाष रोड, विलेपार्ले (इ.), मुंबई-३७