Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 145
________________ १३८ अनुसन्धान-७६ बाला. म.गू. भाषानी दृष्टिए समृद्ध छे. केटलाक गुजराती शब्दोनां जूनां रूप अहीं सचवायां छे. 'आपहिणी' (गा. १४) ए म.ग.ना 'आफणी'नुं पूर्वरूप छे. आजे 'आफूडो' रूपे हाजर छे (हवे जो के संभळातो नथी). अर्थ छ : जाते, पोतानी मेळे. आजनो 'विगत' शब्द स्त्रीलिङ्गमां छे, केम के तेनुं मूळ 'व्यक्ति'मां छे. व्यक्ति एटले छूटुं पाडीने, एक एक करीने जणावq ते. अर्थविकास थतां व्यक्ति = स्पष्ट, विस्तृत एवो अर्थ उमेरायो. गा. ४२नी उत्थानिका : 'हिव ए बिन्हइ भेद व्यगति वखाणइ छइ' एम छे, त्यां छूटुं पाडीने, स्पष्टतापूर्वक एवो अर्थ नीकळे छे. व्यक्ति → व्यगति → विगति → विगत - आवो विकासक्रम समजी शकाय छे. हवे 'विगत' शब्द भाववाचक के अव्यय न रहेतां विशेषनाम बन्यो छे. गा. ६१मां 'अरानुं परि, परानुं अरि' एवो प्रयोग छे, एनो 'पेलानुं आने, आनुं पेलाने' एवो भावार्थ जरूर थई शके, परन्तु शब्दार्थ 'अहीतुं त्यां, त्यांनं अहीं' एवो समजाय छे. कच्छीमां 'ओरेआ परेआ' प्रचलित छे. जूनी गुजरातीमां 'अरहो परहो' मळे छे. वर्तमान 'मोडुं' 'मोडे'नुं पूर्वरूप 'मउडेरउं' अने 'वहेलुं'नुं पूर्वरूप 'विहलङ' गा. ४०ना बाला० मां जोवा मळे छे. गा. ४४ बा.मां 'उछंदिय' छपायुं छे, परन्तु मूळमां 'उछिदिय' छे. बा. मां एनो अर्थ 'ऊधारउं' आप्यो छे. अहीं गू. 'उछीनु'- मूल उत् + छिद् धातु छे ए स्पष्ट थाय छे. उच्छिन्न → ऊछीनउ → ऊछीनु. (एक आड वात : वर्तमान संस्कृतमा प्रचलित न होय अने सं. शब्दकोश / धातुकोशमां पण नोंधाया न होय एवा प्रयोगो टीकाग्रन्थो, काव्यो, चरित्रो, शास्त्रोमां मळता होय छे. आवा शब्दो / धातुओने सं. कोशमा समावेश करवानुं काम कोइके करवा जेतुं छे. सं.मां क्यारेक व्यावहारिक कामकाजना शब्दो खूटता जणाय छे, ए खोट पूरी करी शकाय. प्राकृतग्रन्थो पण आनो सारो स्रोत बनी शके.) गा. ५२मां 'ओरावइ' छे. अर्थ छे (रंधाता भातमां) चोखा ओरावे. 'अध्यवपूरक ए गोचरीनो एक दोष छे. अर्थ छे - उपरथी ओर जेमां थतुं होय तेवी क्रिया. अहीं गुजराती 'ओरतुं'मूळ अव+पूर मळे छे. जैन साधुनी चर्यानो एक शब्द छे - काप. 'काप काढवो' = कपडा धोवा. गा. ५४ बा.मां 'ऊपरि वली त्रिणि काप दीजइ' एवं वाक्य छे. पात्रने राखथी मांजी त्रण वार तेने 'काप' देवो - अर्थात् पाणीथी वीछळवू. अहीं

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