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जान्युआरी- २०१९
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स्रोतमांथी विगतो एकत्र करी आपी छे. श्री शिरीष पंचाल 'महाकाव्यो जेवी रचनाओमां प्रक्षेपोनो प्रश्न' लेखमां साहित्यजगतनो आ एक मूंझवतो प्रश्न जुदा ज दृष्टिकोणथी चर्चे छे. प्रक्षेपो थया छे ए सिद्ध थयेली वात छे. विविध ग्रन्थोमां थयेला प्रक्षेपोनो इतिहास आपीने लेखके ए जणाववानो प्रयास कर्यो छे के सामाजिक / नैतिक उद्देश सिद्ध करवा माटे अलग अलग तबक्के जूनी कथामां नवां कथाघटको उमेरायां छे, हेतु नैतिक संदेश आपवानो छे.
श्री रामलालजी महाराजे तिर्यंच स्त्रीना अल्पबहुत्वनी सटीक चर्चानो लेख आप्यो छे - जे शास्त्राभ्यासीओने उपयोगी थशे.
__बृहत्कल्पसूत्रनी अमुद्रित चूर्णि, संशोधन-सम्पादन अनु०ना सम्पादक आचार्यश्री तथा तेमना शिष्यमण्डल द्वारा थई रह्यं छे. चूर्णिना पीठिकाखण्डनुं प्रकाशन कर्या पछी आचार्यश्रीने ख्याल आव्यो के वाचना जे रीते थवी जोईए ते रीते तैयार थई नथी. एमणे ए प्रकाशनने रद जाहेर करी समग्र कार्य फरीथी हाथ धर्यु अने ए प्रथम खण्ड पुनः प्रगट कर्यो. श्रुतभक्ति अने संशोधकधर्मनी निष्ठानुं आ उज्ज्वल उदाहरण छे. नूतन आवृत्तिनी विस्तृत प्रस्तावना आ अंकमा लेख रूपे समाविष्ट करवामां आवी छे. आ प्रस्तावनामां प्राचीन ग्रन्थोना सम्पादननी बारीकीओ / समस्याओ तथा सम्पादन-पद्धतिनी मूल्यवान झीणी झीणी विगतो निहित छे. ग्रन्थ जेमने जोवा न मळ्यो होय तेवा अभ्यासी जनोने आ महाकाय ग्रन्थ साथे तथा सम्पादन विद्या साथे जोडायेल अनेक बिन्दुओ विशे मूल्यवान जाणकारी मळशे.
खण्ड -२ 'सम्पादन खण्ड'मां केटलीक बृहत् कृतिओ पण समावी होवाथी अंक दळदार थयो छे. संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, म.गू., जूनी हिन्दी, मराठी - आटली भाषाओनी हाजरी छे.
सीमन्धरस्वामीनी स्तुतिरूप त्रण प्राकृत रचनाओमां प्रथम रचना अपभ्रंश अने गूर्जरना सन्धिकाळनी छे. आमां गुजरातीनां लक्षणो विशेष छे. चौदमी सदीनो उत्तरार्ध के पंदरमी सदीनी आ रचना होइ शके. २०मी कडीमां तो म.गूनुं वलण स्पष्ट देखाय छे.