Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 134
________________ १२७ जान्युआरी- २०१९ -तृतीय-पद-संग्रहणी में भी प्राप्त होती है । यथा "छट्ठाइ सहस्सारे महसुक्के पंचमाए लंतम्मि । पंकाइ बंभलोए तच्चाए पुढवीए माहिंदे ॥११८॥ कमसो असंखगुणिया सणंकुमारे य होंति संखेज्जा । दोच्चाए असंखेज्जा, मुच्छिममणुया वि एमेव ॥११९।। तेसिं तु असंखगुणा ईसाणसुरा उ संख देवी उ । सोहम्मकप्पदेवा देवी संखेज्ज कमसो उ ॥१२०।। - श्री प्रज्ञापनोपाङ्ग-तृतीय-पद-संग्रहणी, गाथा ११८-१२० यहाँ भी सहस्रार से माहेन्द्र देवलोक तक क्रमशः असंख्यातगुणा बताया है एवं तदनन्तर सनत्कुमार को संख्येयगुणा कहा है । पुनः दूसरी पृथ्वी के नैरयिकों को असंख्येयगुणा कहा है । यदि यहाँ सनत्कुमार को माहेन्द्र से असंख्येयगुण कहना अभीष्ट होता तो ग्रन्थकार माहेन्द्र तक क्रमशः असंख्येयगुणा न कहकर सीधा ईशान देवलोक के देवों तक असंख्येयगुणा कहते । ज्ञातव्य है कि इस ग्रन्थ की एक हस्तप्रत तथा मुद्रित प्रति (जैन आत्मानन्द सभा भावनगर से प्रकाशित, पू. मुनि श्रीचतुरविजयजी द्वारा सम्पादित) में - 'हुंतसंखिज्जा' कहकर सनत्कुमार देवलोक को असंख्येयगुणा कहा है जबकि श्री प्रज्ञापनोपाङ्ग-तृतीय-पद-संग्रहणी की अन्य हस्तलिखित प्रतियों में स्पष्टतः ‘होति संखेज्जा' कहकर सनत्कुमार को संख्येयगुणा ही कहा है। २ बिन्दु क्रमाङ्क - ७ इसी प्रकार महादण्डक का संग्राहक एक अन्य प्रकरण ग्रन्थ, जो पाटण की (पातासंघवीजीर्ण ४६) ताड़पत्रीय हस्तलिखित प्रति में है, उसमें भी इसी शैली का अनुसरण है एवं वहाँ भी सनत्कुमार देवों को संख्येयगुण बताया है । यथा "छट्ठाए सहस्सारे महसुक्के पंचमाए लंतम्मि । पंकाए बंभग(क)प्पे, तच्चाए पुढवी माहिदे ॥

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