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जान्युआरी- २०१९
श्रीविबुधविमलसूरि-कृत
पूजाकाव्यो
- सं. शी.
जैन मन्दिरोमां पूजाओ भणाववानी एक प्रणालिका छे. तेमां साधारण रीते ८ प्रकारनी ८ पूजा होय छे. दरेक पूजाने आरम्भे दूहा, अने अन्ते काव्य तथा मन्त्र बोलवानो नियम छे. सामान्य रीते पूजाना रचनार कवि द्वारा ज ते काव्यो रचाय छे. ते संस्कृतमां होय छे.
पण्डित शुभ-वीरे रचेली ६४ प्रकारी पूजामां आठ आठ पूजाना आठ जोडा छे. तेमां दरेक पूजाने अन्ते बे-बे काव्यो बोलाय छे. ते काव्यो पूजाना दरेक जोडामा प्रयोजातां होय छे. आ काव्यो अत्यारे तो अशुद्ध छपाय छे ने बोलाय छे. आ काव्यो कोना बनावेलां होय? एवो प्रश्न क्यारेक मनमां थया करतो. हमणां, थोडां वर्ष पूर्वे, एक मुद्रित प्रति हाथमां आवेली. तेमां तपागच्छनी 'विमल' शाखाना साधु-कविओए बनावेली केटलीक रचनाओ हती. तेमां आ पूजा-काव्यो पण हतां. ६४ पूजामां जो के २-२ काव्य बोलाय छे, परन्तु आमां तो ते पैकी १-१ ज काव्य जोवा मळे छे! आनो शो उकेल ?
आनो उकेल ए के ८x२=१६ पैकी प्रथम क्रमे बोलातां ८ काव्यो आ. विबुधविमलसूरि-रचित छे, अने बीजा क्रमे बोलातां ८ काव्यो स्वयं पूजाकर्ताएशुभवीरे बनावेलां होय एम मानी शकाय.
प्रथम क्रमे बोलातां ८ काव्यो घणां अशुद्ध रूपमां मळे छे ने बोलातां रहे छे. प्रस्तुत वाचनामां ते शुद्ध रुपमा उपलब्ध होवाथी अत्रे पुनः प्रकाशित करवामां आवे छे. मुद्रित प्रतिमां आ काव्योने "अष्टप्रकारपूजागर्भितश्रीजिनेश्वराष्टकम्" एवां नामे ओळखाववामां आवेल छे. तेना कर्ता श्रीविबुधविमलसूरि महाराज छे, जे विमलगच्छना प्रायः १९मा शतकमां थयेला एक विद्वान् आचार्य छे. विशेष विगत हाल हाथवगी न होवाथी आपी शकाती नथी.