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जान्युआरी- २०१९ स्वाध्याय चतुर्थ देवलोक के देवों से तृतीय देवलोक के देवों के अल्पबहुत्व सम्बन्धी स्पष्टता
- आचार्यश्री रामलालजी म. सारांश ( ABSTRACT)
श्रीमत् प्रज्ञापनासूत्र के तृतीय पद के महादण्डक इत्यादि में चतुर्थ देवलोक के देवों से तृतीय देवलोक के देवों को असंख्येयगुणा माना जा रहा है । साधक-बाधक प्रमाणों का तटस्थ प्रज्ञा से अवलोकन करने पर यह निष्कर्ष प्राप्त होता है कि 'चतुर्थ देवलोक के देवों से तृतीय देवलोक के देव संख्यातगुणा'
एतत्सम्बन्धी संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है
श्रीमत् प्रज्ञापना सूत्र व श्रीमद् जीवाजीवाभिगम सूत्र की हस्तप्रतों में 'संखेज्जगुणा' पाठ है । (देखें-बिन्दु क्रमाङ्क-१) जीवसमास के वृत्तिकार ने जीवसमास के कथन को असंगत बताते हुए 'महादण्डक' (श्रीमत् प्रज्ञापना सूत्र, पद ३) के अनुसार 'संख्येयगुणा' बताया है । (देखें-बिन्दु क्रमाङ्क-२) ।
जीवसमासवृत्ति में उद्धृत महादण्डक में (हस्तप्रतों में) 'संखेज्जगुणा' __ पाठ है । (देखें-बिन्दु क्रमाङ्क-३) ४. श्रीमद् भगवतीसूत्र की श्रीअभयदेवसूरि कृत वृत्ति में उद्धृत श्रीमद्
जीवाजीवाभिगम सूत्र के उद्धरण में 'संखेज्जगुणा' पाठ है। (देखें-बिन्दु क्रमाङ्क-४) श्रीमद् जीवाजीवाभिगम सूत्र में मूलपाठ की शैली में 'जाव' का प्रयोग 'संख्येयगुणा' को दृढ़ता से पुष्ट करता है । (देखें-बिन्दु क्रमाङ्क-५) प्रज्ञापनोपाङ्ग - तृतीय - पद - संग्रहणी (श्री अभयदेवसूरि रचित), महादण्डक प्रकरण, भगवती चूर्णि तथा षट्खण्डागम (धवला टीका) इनमें भी 'संख्येयगुणा' बताया है । (देखें-बिन्दु क्रमाङ्क६-७-८)