Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 126
________________ जान्युआरी- २०१९ ११९ ॥ ढाळ ॥ अनु पूरव भव तु राजा, हुतु धन्या नामि राणी । अनु पर भवि कमला ताहरइ, हूती क्रोध तणइ परमाणि रे प्राणी । तवसउं केवली बोलइ, अनु जीव तिल जेतलुं कर्म बाधइ । ते दुख सहइ मेरु तोलइ रे प्राणी ॥३५॥ अनुं मारी रे बांधी मल खाडइ, घाली इणि राणी एक बाधी । अनु भुखीतरसी अति घणी, राखि अंगि पडी सविवा(धी?) रे प्राणी ॥३६।। अक दिन राखी बाहरि काढी, इस्या रे कीधा पाप काज । अनु ते कर्म कमलानइ उदय आव्या, भोगवि छइ ते आज रे प्राणी ॥३७॥ अनु धम्म मरीनइ कमला रे हुई, लागा परभव पाप । अनु इसिउं स्वरुप सुणीनइ राजा, मनि करि सोक संताप रे प्राणी ॥३८॥ अनु छम्माहू आ दुख देखंता, तेहनई भोगव्या आधा कर्म । अनु वरस लगणि पूरा कर्म, भोगवी पछइ शिव शर्म रे प्राणी । अनु ते वली छूटसि तुझनइ मिलिसइ, मनि म करिसि उबा(चा)ट । अनु इसिउं रे कही केवलिअ सिधाव्या, गेय(गये) यो(जो)इ नितु वाट प्राणी ॥४०॥ ॥ ढाळ ॥ वेडी रे भागी पाय लागु सही सील प्रभावि मानइ मा कही । कीरतिवर्धन त(भ)गति करी पछइ वाहणि वडावी आविउ भरुअच्छि ॥४१॥ नगर भरुअछि माहि मेहली पीडरि सहू आवी । मिलइ माय बाप बंध बहिनि अतिघणा साइदि वलगी गलइ । तेह पासइ ओक सासइ दुख सहू कमला कहइ । बाप करइ विलाप अति घणा माय रडती नवि रहइ ॥४२॥ तिहाथी रे चाला प्रीय भेटणि भणी रथवल्लभराइ कलत्र आवी सुणी । अक जणि जइ दिइ रे वधामणी साहमु आव्यउ कमलानु धणी ॥४३॥ धणीअ जइनइ लइअ आविउ हरिखि पूररिया बे जणा । भरतार प्रतिबोध दिइ कमिनी वचन कही धर्मह तणां । आयु थोडं धर्म जोडु भोग च्छोडउ वल्लहा । धर्म विण नर जन महारिउ भोग भवि भवि सल्लहा ॥४४॥

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