Book Title: Anusandhan 2019 01 SrNo 76
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अनुसन्धान-७६
६४ प्रकारी पूजानां काव्यो ॥ अथ श्रीमत्तपागच्छाचार्यश्रीविबुधविमलसूरिविरचितम् ।। ॥ अष्टप्रकारपूजागर्भितश्रीजिनेश्वराष्टकम् ॥
॥ द्रुतविलम्बितवृत्तम् ॥ जिनपतेर्वरगन्धसुपूजनं, जनिजरामरणोद्भवभीतिहत् । सकलरोगवियोगविपद्धरं, कुरु करेण सदा निजपावनम् ॥१॥ सुमनसां गतिदायिविधायिनां, सुमनसां निकरैः प्रभुपूजनम् । सुमनसा सुमनोगुणसङ्गिना, जन! विधेहि निधेहि मनोऽर्चने ॥२॥ क्षितितलेऽक्षतशर्मनिदानकं, गणिवरस्य पुरोऽक्षतमण्डलम् । क्षतजनिर्मितदेहनिवारणं, भवपयोधिसमुद्धरणोद्यतम् ॥३॥ भवति दीपशिखापरिमोचनं, त्रिभुवनेश्वरसद्मनि शोभनम् । स्वतनुकान्तिकरं तिमिरं हरं, जगति मङ्गलकारणमान्तरम् ॥४॥ शिवतरोः फलदानपरैर्नवै-वरफलैः किल पूजय तीर्थपम् । त्रिदशनाथनतक्रमपङ्कजं, निहतमोहमहीधरमण्डनम् ॥५॥ अगुरुमुख्यमनोहरवस्तुनः, स्वनिरुपाधिगुणौघविधायिनः । प्रभुशरीरसुगन्धसुहेतुना, रचय धूपनपूजनमर्हतः ॥६॥ सुरनदीजलपूर्णघटैर्घनै-घुसृणमिश्रितवारिभृतैः परैः । स्त्रपय तीर्थकृतं गुणवारिधि, विमलतां क्रियतां च निजात्मनः ॥७॥ अनशनं तु ममास्त्विति बुद्धितो, रुचिरभोजनसञ्चितभाजनम् । अनुदिनं विधिना जिनमन्दिरे, शुभमते! बत ढौकय चेतसा ॥८॥ अष्टप्रकारां मुनिनाथपूजां, यो देहधारी विदधाति नित्यम् । अर्हत्पदं प्राप्य स याति मुक्ति, तत् पूजय त्वं विबुधेश्वरेशम् ॥

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156