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जान्युआरी- २०१९
पर्वाराधनानी, तेमज संघयात्रा कराव्यानी विगतो आपवा पूर्वक ढाळनुं समापन करे छे.
हवेनी छेल्ली ढाळ कविए 'जावड समरी उद्धार' ए देशी रागमां ढाळी छे. आ ढाळमां मुख्यत्वे कवि वडे प्रतिष्ठा प्रसंगे करायेला व्यवहारधर्मनो उल्लेख करायो छे जेमां, प्रतिष्ठानी कंकोत्रीओ मोकली महाजनने तेडाववं, गुरु भगवन्तोने पधराववा, प्रतिष्ठानिमित्ते सुवर्णमुद्रानी लहाणी करावी, अमारिनी उद्घोषणा कराववी, स्वामिवात्सल्य करवा इत्यादि व्यवहारधर्मनी वातो कविए आलेखी छे. आ ज ढाळना आठथी अग्यारमा पद्य सुधी कवि ते श्रेष्ठिओनी राजकीय बुद्धिप्रतिभानुं वर्णन आलेखे छे. जहांगीर वडे ते श्रेष्ठिओ परतकालपति(?)ना देशमां मोकलाया त्यारे त्यां पण तेओए ते राजाने खुश करी, अमारि-पडह वगाडावी लोकोने धर्मनो मार्ग बताव्यो. अहीं ११मा पद्यमां करेली कविनी नोंध मुजब ते श्रेष्ठिओए करावेली अमारिनी आज्ञा कृतिकारना समय सुधी ते गाममां पळाती हती ते बीना विशेष नोंधपात्र छे. त्यारपछीनां पद्योमां कविए ते श्रावकोए करेलां तीर्थयात्रा, सुपात्रदान, पौषधशाळा तथा दानशाळा निर्माण, अनुकम्पा, शत्रुजयादि ५ तीर्थोमां चैत्यनिर्माण, ज्ञानभण्डार-सर्जन तथा जीर्णोद्धारनां कार्योनी सामान्य नोंध आपी छेल्लां ४ पद्यो द्वारा कृति-रचना समये प्राप्त थती चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रभुना जिनमन्दिरनी तत्कालीन अवस्थानुं वर्णन रजू क£ छे. कविनी नोंध मुजब ते समये जिनालयना भोयरामां स्तम्भन पार्श्वनाथनी, ऋषभदेवनी, शान्तिनाथजीनी, धरणेन्द्र तथा पद्मावतीनी तथा यक्ष-यक्षिणीनी प्रतिमा बिराजमान हती. जेनी संवत् १७८५मां जीवीबाईए पूजा पण करी हती. जो के अहीं सागवटा पाडाना आ जिनालय, वर्णन करतां शेष पद्यो प्रत अधूरी रहेवाना कारणे अप्राप्य होई कृतिनाम अस्पष्ट रहे छे. तो कर्ता, तेना रचनासमय विशे पण काव्यमांथी कशुं जाणी शकातुं नथी. जो के जीवीबाईनी पूजा कर्यानी संवत् परथी कृतिनी रचना त्यार पछी ज थई होवानुं निश्चित थाय छे.
प्रान्ते, प्रस्तुत कृतिनी जो सम्पूर्ण हस्तप्रत प्राप्त थाय तो कृतिनी शेष विगतो पर प्रकाश पडे. सम्पादनार्थे प्रस्तुत कृतिनी हस्तप्रतनी नकल आपवा बदल खम्भातना अमरशाळा जैन ज्ञानभण्डारना व्यवस्थापकश्रीनो, प्रो. कीर्तिभाईनो तेम ज मनुदादानो खूब खूब आभार.