Book Title: Anusandhan 2015 12 SrNo 68
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 14
________________ अनुसन्धान-६८ • सोमनाथपाटणमां श्रीधर्मघोषसूरिजीओ प्रतिबोधेला यक्षनुं नाम अत्रे 'गोमुख' जणावायु छे, अन्यत्र 'कपर्दी' मळे छे. श्रीसोमप्रभसूरिजी द्वारा कोडीनारमा अम्बिका मातानो कायोत्सर्ग करवानी वात पण नवी ज छे. ओ ज रीते तेओना पट्टधर श्रीसोमतिलकसूरिजीना अत्रे नोंधायेला घणाखरा प्रसङ्गो अन्यत्र प्रायः जोवा मळता नथी. ए दृष्टिले आ पत्र बहुमूल्य छे. श्रीसोमप्रभसूरिजीना शिष्य अने श्रीसोमतिलकसूरिजीना मोटा गुरुभाई श्रीपद्मतिलकसूरिजीनी आचार्यपदवी श्रीसोमतिलकसूरिजीना हाथे थई हती. आ सम्बन्धे आ पत्रमा आम उल्लेख छ : "श्रीसोमतिलकसूरिभिः क्रमेण श्रीपद्मतिलकसूरि १-श्रीचन्द्रशेखरसूरि २ - श्रीजयानन्दसूरि १ - श्रीदेवसुन्दरसूरीणां २ सूरिपदं दत्तम् । तेषु श्रीपद्मतिलकसूरयः श्रीसोमतिलकसूरिभ्यः पर्यायज्येष्ठा एक वर्षं जीविताः ।" आवो उल्लेख अन्यत्र पण आवे छे. हवे आनी पहेलां आवेलो श्रीपरमानन्दसूरिजी-सम्बन्धित उल्लेख जुओ - "... ७३ वर्षे श्रीपरमानन्दसूरिश्रीसोमतिलकसूरीणां द्वयेषां सूरिपदं ... श्री परमानन्दसूरयो वर्षचतुष्कं जीविताः।" आनो अर्थ आपणे ओम करीशुं के श्रीपरमानन्दसूरिजी आचार्यपद पछी चार वर्ष जीव्या. त्रिपुटी महाराजे पण अत्रे आवो ज अर्थ को छे. परन्तु उपरोक्त श्रीपद्मतिलकसूरिजीवाळा पाठमां तेओ ओवो अर्थ जणावे छे के "ते (= पद्मतिलकसूरिजी) दीक्षामां श्रीसोमतिलकसूरिजीथी एकवर्ष मोटा हता. तेमनाथी वधु एक वर्ष जीवीने तेओ पण स्वर्गे गया." अने अटले ज तेओओ श्रीपद्मतिलकसूरिजीनो स्वर्गवास सं. १४२४मां श्रीसोमतिलकसूरिजीना स्वर्गवास बाद एक वर्षे सं. १४२५*मां देखाड्यो छे. (जैपइ.-३, पृ. १३६). वास्तवमां श्रीपरमानन्दसूरिजीवाळा पाठनी माफक "श्रीपद्मतिलकसूरिजी आचार्यपदवी पछी एक वर्ष जीव्या" ओवो अर्थ न करवो जोईए ? तपागच्छपट्टावली (-महोपाध्याय श्रीधर्मसागरजी)मां श्रीजयानन्दसूरिजी - श्रीदेवसुन्दरसूरिजीना आचार्यपदनी मिति सं. १४२०नी चैत्र शुद १० अपाई छे. ज्यारे अत्रे वैशाखी दसम जणावाई छे. ज रीते श्रीज्ञानसागरसूरिजीनो जन्मसंवत् अत्रे १४०४नो, तपागच्छपट्टावलीमां १४०५ छे. • श्रीजयानन्दसूरिजी कृत 'जावडिकथा'नो उल्लेख पण अन्यत्र जोवा नथी मळतो. आ इतिहास-पत्रना लेखक के रचनासंवत् विशे पत्रमां कोई उल्लेख नथी. * अत्रे प्रूफनी भूलथी सं. १४१५ छपाई छे.

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