Book Title: Anusandhan 2015 12 SrNo 68
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 115
________________ डिसेम्बर - २०१५ १०९ सनेही; अङ्क ६२, पृ. ६१-६२. ११८. स्तवचतुर्विंशतिका (५मा तीर्थङ्करना स्तवना ११मा श्लोक सुधी प्राप्त) - क. - श्रीरामचन्द्रसूरिजी, सं. – मुनि श्रीसुयशचन्द्र-सुजसचन्द्रविजयजी; संस्कृत, दरेक स्तवना १३-१३ श्लोक, आदि – पादाः पुष्णन्तु पुण्यानि; प्रत - नेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर - सूरत, १ पत्र; अङ्क ६३, पृ. १-६. ११९. चतुर्विंशतिजिनस्तवनम् (भाषात्रयसमम्) - सावचूरि - क. - श्रीरत्नशेखरसूरिजी, सं. - म. विनयसागर; संस्कृत-प्राकृत २५ श्लोक, आदि - अमरगिरिगरीयोमारुदेवीयदेहे, अन्त - केवलकला लीलायते मय्यपि; अङ्क ६३, पृ. ९-१६. १२०. पार्श्व( नवखण्ड)स्तवनम् - सावचूरि - क. - श्रीरत्नशेखरसूरिजी, अव. - अज्ञात, सं. - म. विनयसागर; संस्कृत, ८ श्लोक, आदि - जय प्रभो! त्वं नवखण्डपृथ्वी०, अन्त - स्फुरद्यशाः शाश्वतसम्पदेऽस्तु वः; अङ्क ६३, पृ. १६-१८. १२१. पार्श्वजिनस्तवनम् (नवग्रहस्तुतिगर्भम्) - सावचूरि - क. - श्रीरत्नशेखर सूरिजी, अव. - अज्ञात, सं. - म. विनयसागर; संस्कृत, १० श्लोक, आदि - पार्श्वः श्रियेऽस्तु भास्वान्, अन्त - अशुभाः स्युर्ग्रहाः शुभदाः; अङ्क ६३, पृ. १९-२१. १२२. तीर्थद्वयस्तवनम् - सावचूरि - क. - श्रीरत्नशेखरसूरिजी, अव. - अज्ञात, सं. - म. विनयसागर; संस्कृत, ५ श्लोक, आदि - श्रीअर्बुदाद्रिमुकुट०, अन्त - देयाः श्रीसोमसुन्दरस्वपदम्; अङ्क ६३, पृ. २१-२२. १२३. कीर्तिकल्लोलिनीकाव्यम् - क. - पं. श्रीहेमविजयगणि, सं. - अम्बालाल प्रेमचन्द शाह, म. विनयसागर, मुनि श्रीत्रैलोक्यमण्डनविजयजी; संस्कृत, 'प्रताप', 'कीति' अने 'सौभाग्य' ए त्रण अधिकार, २०७ श्लोक, श्रीविजयसेनसूरिजीना गुणोना वर्णननुं काव्य, आदि - ऐन्द्रं वृन्दममन्दमोदमभजत्, अन्त - भवतु सुगहना गाह्यमाना चिरश्रीः; प्रत -

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