Book Title: Anusandhan 2015 12 SrNo 68
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-६८
१५५, १६८, १६९, १७६, १७७ १६२ संस्कृत-गद्य-पद्य - २१, ४०,७०, ९६, राजस्थानी-पद्य - ९४, ११२, ११३,
१३२, १३३, १६७, १७४, १७८ ११५, ११७, ११८ गुजराती-पद्य - २, ९, ९१, ९८-१०५, राजस्थानी-गद्य - १२१, १५६
१०७, १०८, ११४, ११६, ११८, राजस्थानी-गद्य-पद्य – ९५-९७, ११०,
१२२, १२४, १२७, १२९, १३१ १११, १२३, १५७ गुजराती-गद्य - १२५, १५८, १६३, हिन्दी-पद्य - ९०, १२०, १२८, १७९ १८०-१८२
षड्भाषा - १६६ गुजराती-गद्य-पद्य - ९२, ९३, १०६,
१०९, ११९, १२६, १५९, १६०,
७. पत्रोनी आदिपद प्रमाणे सूचि (अकारादिक्रमे)
आदि
पत्रक्रमाक
ॐ नत्वा भ. श्रीविजयलक्ष्मीसूरिभिर्लिख्यते अनन्तज्ञानदृक्सौख्यवीर्यसंवलितात्मने गुर्जर देस छै वारु तिहां सेहर घणा छै सारु हो। जयति लसदनन्तज्ञाननि ससान्द्रः जयत्यनन्तं परमात्मसङ्गतं तदद्भुतं ज्योति० दीठा गुरु दोलति हूवै प्रह उगते सूर। पार्श्व पार्श्वप्रणुतं प्रणिपत्य निरत्यैक० प्रगटप्रभावी त्रिभुवनिं त्रिभुवनजनसुखकार प्रतिपदवनग्रामराजिते ऋद्धिवृद्धिकृतनिवासे अनेक० । प्रप्यानध्यानसन्धानसम्भवं भवभेदकम् प्रेमें प्रणमुं भारती गणपत गुणगंभीर। मन्दारभासुरतरं द्विजराजराजमानं विमानिपथवद लेख लिखइ श्रीसङ्घ पूज्य वीनती अवधारो। विजयप्रभ वाल्हेसरू रे परघल आंणी प्रेम विवेक कहि सुरनर बहु पदपंकज प्रणमंति श्रिये स वः सप्तमतीर्थनेता यस्यांऽह्रियुग्मश्रयणा०

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