Book Title: Anusandhan 2015 12 SrNo 68
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
डिसेम्बर - २०१५
अपभ्रंश, २१ गाथा, तीर्थकरना ३४ अतिशयोनुं वर्णन; आदि - नाभिनरिंद मल्हार मरुदेवि माडिउ उरि रयणु; अन्त - अवरु न कांई इच्छिय ए, प्रत - जैसलमेर ज्ञानभण्डार; अङ्क ५२, पृ. ५८-६२. विगय-निवायताविवरण - क. - खरतरगच्छीय श्रीजिनहर्षसूरिजी → उपा. श्रीआनन्दरत्न → श्रीवच्छराज मुनि, सं. - मुनि श्रीसुयशचन्द्रसुजसचन्द्रविजयजी; हिन्दी, ५५ कडी, र.सं. १८८७, नन्नीबीबी श्राविकाना आग्रहथी रचायेल, विकृतिजनक द्रव्यो अने तेमनां नीवियातानुं वर्णन; आदि - चरणांबुज गुरुदेव नमी कर समरण मन ध्यांन, अन्त - जैन धर्म सेवो सदा शिवमन्दिर की पाज; प्रत - आत्मानन्द जैन सभा - भावनगर, कर्ता द्वारा सं. १९०८ मां तपस्वी मोहन माटे लिखित; अङ्क ५२, पृ. ६३६९. कोणिकराज-साम्हइयु - क. - पं. श्रीशुभविजयजी → पं. श्रीवीरविजयजी, सं. - तीर्थत्रयी (मुनि तीर्थरुचि-तीर्थवल्लभ-तीर्थतिलकविजयजी); गुजराती, ढाळ ११ कडी २१२ श्लोकप्रमाण २५८, लींबडीनिवासी वोहरा जयराज माटे लींबडीमां सं. १८६४ना देवदीवाळीना दिवसे रचित, औपपातिकसूत्रगत कोणिक राजाओ करेला प्रभुवीरना सामैयाना वर्णननो रसाळ पद्यबद्ध भावानुवाद; आदि - विमल वचनरस वरसती सरसति प्रणमी पाय, अन्त - संघनें शान्ति करायो रे; प्रत - आ.क. पेढी ज्ञानभण्डार - लींबडी, क्र. २१८४, कर्ता द्वारा लिखित प्रथमादर्श; अङ्क ५२, पृ. ७०-९५. तत्त्वविचारप्रकरण - खरतरगच्छीय श्रीजिनपतिसूरिजी → श्रीजिनपाल गणि वाचनाचार्य (सं. १३१० काळधर्म), सं. - हरिवल्लभ भायाणी; गुजराती, गद्य, आदि - नमिउं जिणपासपयं विग्घहरं पणयवंछियत्थपयं; प्रत - सं. १३८४ वर्षे राजभूमि देशवछालसामां श्रीजिनप्रबोधसूरिजी → श्रीआनन्दमूर्ति द्वारा लिखित कोईक प्रतनां ३२०-३२७ पानामांथी सम्पादित;
अङ्क ५३, पृ. १-९. १०. उगतीयं शब्दसंस्कारः - क. - अज्ञात, सं. - श्रीकल्याणकीर्तिविजयजी;
गुजराती, गद्य, मध्यकालीन शब्दसङ्ग्रह, आदि - आज-अद्य काल्हिकल्ये; प्रत - ऋषि रूपा लिखित; अङ्क ५३, पृ. १०-३७.

Page Navigation
1 ... 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147