Book Title: Anusandhan 2015 12 SrNo 68
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 12
________________ अनुसन्धान-६८ किर्तेक देवता तुम स्वरूप धार वंचितो, तथापि जानहुं प्रभो! तुमे ज मोहि स्वीकृतो; न होय जो मदिष्ट-सिद्धि सो तवेव न्यूनता, सुकीत्तिमंत! योग्य नांहि जो मुझे विसारता. ३६ चौपई : या प्रभु! है मुझ यात्रा-सेव, यौ हि स्नान-महोच्छव देव!; जो मुनिजनकुं नाहि निषेध, साचे तुम गुण-ग्रहण-सुमेध. ३७ थंभनपुरमंडन-श्रीपास!, होउ प्रसन्न सदा सुखवास!; इनविध वीनति करै अनिंद, अभयदेवसूरीश मुनिंद. ३८ [युग्मम्] महिमापुरमंडन जिनराय, सुविधिनाथप्रभुकें सुपसाय, श्रीजिनचंद्रसूरि मुनिराज, धर्मराज्य जयवंत समाज. ३९ बंगदेशशोभित सुश्रोत, ओशवंश का तेलागोत्र, सोभाचंदसुत गूजरमल्ल, भ्राता तनसुखराय निसल्ल. ४० तिनके आग्रह से जु नवीन, 'जय तिहुअन की भाषा कीन, वाचक अमृतधर्म गनीस, सीस क्षमाकल्याण जगीस. ४१ इति श्रीजयतिहुअणस्तोत्रभाषा सम्पूर्णः समाप्तौ ॥ ग्र० ६५ ॥ श्रीरस्तु ॥ कल्याणमस्तु । सं० १९६९(?) ॥ छ ॥ श्री ॥

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