Book Title: Anusandhan 2015 12 SrNo 68
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 34
________________ २८ अनुसन्धान-६८ पत्र-१ स्वस्तिश्रीवीरजिनं प्रणम्य अहम्मदावादनगरात् श्रीविजयसेनसूरयः सपरिकराः खंभायितनगरे सुश्रावक पुण्यप्रभावक श्रीदेवगुरुभक्तिकारक श्रीजिनाज्ञाप्रतिपालक श्रीसम्यक्त्वमूलद्वादशव्रतधारक संघमुख्य सा. सोमा सा. श्रीमल्ल सं. सोमकरण उदयकरण सा. नेमिदास वजिया ठा. लाई कुंअरजी प्रमुख संघ योग्यं धर्मलाभपूर्वकं लिखन्ति । यथाकार्यं च -- अत्र धर्मकार्य सुखइं प्रवर्तइ छइ श्री देवगुरुप्रसादिं । अपरं तमारु लेख पुहुतु । समाचार प्रीश्या । तथा तुमारा धर्मोद्यम करवाना उद्यम सांभली संतोष उपनो । तथा श्रीहीरविजयसूरि प्रसाद कर्या जे बार बोल, ते मध्ये अनुमोदवाना बोलमंहिं - दानरुचिपणुं १, स्वभावि विनीतपणुं २, अल्पकषाईपणुं ३, परोपकारीपणुं ४, भव्यपणुं ५, दाक्षिणालूपणुं ६, दयालूपणुं ७, प्रियभाषीपणुं ८, इत्यादिक जे साधारण गुण मिथ्यात्वी संबंधिया तथा जैन परपक्षी संबंधीया अनुमोदवायोग्य लिख्या छइ, ते आसिरी कोई कोई एहवं विपरीत अर्थ करता सांभलीई छई - जेहनइ असद्ग्रह होइ तेहना ए गुण अनुमोदीइ नही । जेहनइ किस्याइ बोलनु असद्ग्रह होइ तेहना ए गुण अनुमोदीइ नही । पणि ते जूठं कहइ छइ । जे मार्टि जेहनइं मिथ्यात्व होइ तेहनइ असद्ग्रह अवस्यइं होइ । अनइ सास्त्रमाहिं तो मिथ्यात्वरूप असद्ग्रह थिकइ हुंतइ पणि गुण अनुमोदवायोग्य कह्या छइ । तो मिथ्यात्वीनुं तथा परपक्षीनुं दयाप्रमुख कस्योइ गुण अनुमोदवायोग्य नहीं एहवं जे कहइ तेहनी समी मति किम कहिई ॥१॥ तथा बार बोल माहिं लख्युं छइ जे त्रिणिनां अवंदनिक चैत्य विना बीजां सर्व चैत्य वांदवापूजवायोग्य जाणिवा । ते आसिरी पणि केतलाएक विपरीत वचन कहता सांभलीइ छइ, ते पणि रूढुं नथी करता । ते माटि ए बोल आसिरी तथा बीजा बार बोलना बोल आसिरी जे कुणइ यती तथा श्रावक विपरीत प्ररूपणा करइ तेहनइ आकरी सिखामण देयो । अनइ तुम्हारी सीख न मानइ तु तेहy नाम प्रगटपणइ अम्हनइ जणावयो । तेहनइ अम्हो सीख देस्युं ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147