Book Title: Anusandhan 2015 12 SrNo 68
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ अनुसन्धान-६८ हेठिं तिहुं ग्रीवेकि, ग्यारोतर सउ गृहहं (जिनगृहइं?) तेर सहस सुविवेक, तिनि सइ बीसा वंदियइं ॥३२॥(३३) सतोत्तर सउ ठाण, माहिल तिहुं ग्रीवेयकिहिं बार सहस परिमाण, चालीसे सउ आठसइ ॥३३॥(३४) इकु सउ जिणप्रासाद, तिहुं ग्रैवेयकि ऊपिलिहिं मिल्ही मिथ्यावाद, बार सहस बिम्बह नमउं [॥३५॥] पंचाणुत्तर पंच, बिम्ब छसइ समरउं हियइ संख्या तणउ प्रपंच, हिव सरवंकिइं संभलहु ॥३६॥ गृह चउरासी लाख, अनइ सहस सत्ताणवइ सुणि जिनवरनी भाख, त्रेवीसे अधिका कह्या ए ॥३६।। एक कोडिसउ कोडि, बावन लाख चउराणवए सहस चउवालीस जोडि, सात सइ साठा नमसकरउं ॥३७।। ॥ वस्तु ॥ भणउं तिहुअण, भणउं तिहुअण, भवण जिण संख आठ कोडि सतावन लख, बि सइ गेह ब्यासी सरोहिय तिहिं पनर कोडिसइ, पडिम कोडि बायाल वंदउं अडवन लख छतीस सइ, असी अधिक जिणबिम्ब तिह[अ]णकीरति इम वीनवइ, नमि नमि म करि विलंब ॥३८॥ हिवई असासता नमउं जिण, केवि सत्तुंजय आदि जिण नेमिनाह गिरनारि नायक, मुनिसुव्वय भरवच्छि पुण महुरपास सिव-सुक्खदाइक, साचउरिहिं सिरि वीर जिण अट्ठावय सम्मेति जीराउलि आबू, नमउ संखेसरिहिं सव्वेवि ॥३९॥ कलश इय भवण जिणवरं, संख सासय, कहिय केवलिसइं धणी, जिण सइ अधिकउ, अनइ ओछउ, नाण विणु जं मइ भणिउं । तं खमउ सहुअइ, निउण कवियण, जोडि बे कर वीनवउं, नितु भणउ निसुणउ भवण भवियण, तवन महियलि अभिनवउ ॥४०॥ सास्वता बिम्ब स्तवनं ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147