Book Title: Anusandhan 2015 12 SrNo 68
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान-६८
रहेतो, अने तेथी ते पूछनारने ज नहीं, पण बधायने मान्य बनतो.
अहीं आ प्रकारना ज बे लघुपत्रो रजू थाय छे. बन्ने पत्रो अद्यावधि अप्रगट छे. बन्ने १७मा सैकानी प्रचलित गुजराती भाषामां छे. बन्ने पत्रो, प्रश्न पूछावता पत्रोना प्रत्युत्तररूपे लखायेला पत्रो छे. बन्ने पत्रो तपगच्छपति भट्टारक आचार्यश्री विजयसेनसूरीश्वरजी महाराजे लखेला छे. गच्छपति द्वारा लखाता आवा पत्रोने 'प्रसादीपत्र' तरीके ओळखवामां आवता. आटला महान गच्छपति, पोतानी विविध जवाबदारीओमांथी समय फाळवीने पत्र लखे के लखावे, अने संशयोनां समाधान करे, ते तेमनी कृपाप्रसादी ज गणाय.
विजयसेनसूरि ते जगद्गुरु हीरविजयसूरिना परम कृपापात्र पट्टधर शिष्य हता. शहेनशाह अकबर तथा जहांगीरना तेओ परम प्रीतिपात्र साधु हता. बादशाहे तेमने 'सवाई हीरला' जेवां बिरुद आपेलां, तेमज तेमनी प्रेरणाथी जीवदयानां अनेक कार्य कर्यां हतां. तेमनो सत्ताकाळ सत्तरमो सैको छे.
अत्रे प्रगट थता बे पत्रो पैकी प्रथम पत्र खम्भायित-खम्भात नगरना संघना 'लेख' (पत्र)ना जवाबमां लखायेल छे. खम्भातना सङ्घमुख्य श्रावक सा. सोमा वगेरेने सम्बोधीने लखवामां आवेला आ पत्रमां, श्रीहीरविजयसूरिओ आदेश रूपे फरमावेला बार बोलने अंगे उद्भवेला बे प्रश्नो परत्वे खुलासा मळे छे. हीरगुरुओ पोताना आदेशपट्टकमां ओक बोल ओवा मतलबनो लख्यो छे के, 'मिथ्यात्वीना पण, तथा जैन पण अन्य पक्ष(गच्छ)ना होय तेना पण; दाननी रुचि, स्वाभाविक विनय, कषायोनी अल्पता, परोपकार, भव्यत्व, दाक्षिण्य, दयाळुता, प्रियभाषिता जेवा साधारण गुणोनी अनुमोदना करी शकाय.'
___ आ बोलनो कोई विपरीत अर्थ अवो करवा मांड्या के 'जे लोकोमां असद्ग्रह होय तेवा लोकोना आ बधा गुणोनी अनुमोदना करवानी नहीं, पण असद्ग्रह न होय तो ज तेमना आ गुणोनी अनुमोदना करी शकाय, ओम हीरगुरुनो आदेश छे.'
आथी संघमां द्विधा थई हशे, तेना निराकरण माटे संघे गुरुमहाराजने पूछाव्युं हशे. तेना खुलासामा विजयसेनसूरिगुरु असन्दिग्ध शब्दोमां जणावे छे के 'आवो अर्थ करनारा जूठा छे. केम के ज्यां मिथ्यात्व होय त्यां असद्ग्रह तो अवश्य होवानो. मिथ्यात्व अटले ज असद्ग्रह. ते होवा छतां, तेना पण आ गुणो

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