Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अप्रिल-२००७
विमलजिणतित्थदिक्खं महाबलं मुणिवरं च वंदामि । तं च पुणोवि सुदंसण-सिट्ठिमुणि वीरजिणसीसं ॥१०॥ अयलं विजयं भदं वंदे सुप्पभ सुदंसणं सिद्धं । आणंदनंदणं चिअ पउमं इअ अट्ठ बलदेवे ॥११॥ रामं सुरत्तपत्तं निक्खंतं रायछक्कमवि वंदे । जं मल्लिजिणसमीवे तं मल्लिजिणं सपरिवारं ॥१२॥ सिद्धं विण्णुकुमारं खंधगसीसे नमामि जे सिद्धे । एगूणे पंचसए मुणिवसहे विजिअउवसग्गे ॥१३।। नेगम अट्ठसहस्से सह घित्तूणं च कत्तिओ सिट्ठी । पव्वइओ तं वंदे सुकोसलं तह य कित्तिधरं ॥१४|| किन्हास्स) सुए सिद्धे अट्ठ य अक्खोह-सागरप्पमुहे । तह रहनेमि वंदे वंदे नेमि सपरिअ(वा)रं ॥१५॥ जालि-मयालि-उवयालि-पुरिससेणे अ वारिसेणे अ । पज्जुन-संब-अनिरुद्ध-सच्चनेमी अ दढनेमी ॥१६।। सित्तुंजयम्मि सिद्धे देवइपुत्ता य सिद्धिमणुपत्ता ।। ते वंदिऊण सिरसा गयसुकुमालं नमसामि ॥१७॥ ढंढणमुणिं च वंदे थावच्चापुत्तयं सहस्सेणं । पुरिसाणं संजुत्तं सुगमणगारं च तह वंदे ॥१८॥ पंचसयसाहुजुत्तं सिद्धं वंदे अ सेलगायरियं । सागर-सारणमुणिणो क(व?)च्छल्लं नारयं वंदे ॥१९॥ नारयरिसिपामुक्खे वीसं सिरिनेमिनाहतित्थम्मि । पन्नरस पासतित्थे दस सिरिवीरस्स तित्थम्मि ॥२०॥ पत्तेअबुद्धसाहू नमिमो जे भासिउं सिवं पत्ता । पणचालीसं रिसिभासिआई अज्झयणपवराई ॥२१॥ वंदे दमयंतमुणिं बलदेवसुअं च कुज्जवारययं । पंच य पंडवमुणिणो सपरिकर केसिकुमरगणि ॥२२॥
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