Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 69
________________ hA अनुसन्धान ३९ हवई तेरमी पूजा- गीत वसंत रागइं कहीइं छइ ॥ गीतं-वसंतरागेण । "जिनप आगें विरचो भविलोका जस दरिसणइं शुभ होइं युं रे देखत सब कोई ।१। जिन० ॥ जिनप कहतां वीतराग-जिनेश्वरनां पद आगलि विरचो कहतां रचोनीपजावो, अरे भविक लोको ! भव्य प्राणीओ ! तुमई श्री जीनेश्वरनें भजोध्याओ । जेहनां दरिशणथी मंगलीक होइं, अपमंगलीक वेगलां जाई । तिम अष्टमंगलीकथी अपमंगलीक जाई । जेह श्रीवीतरागना दर्शन थकी तथा अष्टमंगलीक दीठाथी सुख थाई ते माटें । इम तुह्मो सहु प्रांणी देखो जाणो ॥१॥ अतुल तंदुलई करी अष्टमंगल वली तिम रचो जिम' तुह्म घरि होइं ॥जीन० ॥ अतुल क० जेहनी तुलनाइ कोई नावइ एहवा घणां तंदुलें - अखंड चोखें करीनैं श्रीजिननां मूख आगलई, अष्ट-आठ मंगल श्रेणि तिम रचो- तिम करो जिम फिरी तुम्हारई घरइं अष्टकर्म चोर विलय जाइं, आठ मंगलिक थाइ, तथा अष्टमद घात जाई, तथा अष्टकर्मना शोभाव मंगलीक थाइ तिम प्रांणी तुम घरे होयं, उपद्रव जाई, भय रहीत थाई ॥२॥ स्वस्तिक १ श्रीवत्स २ कुंभ ३ भद्रासन ४ नंद्यावर्तक ५ वर्द्धमांन ६ । मत्सयुग ७ दर्पण ८ तिम वरफल गुण, तेरमी पूजा सवि कुशल निधानं ॥२॥ जिन० ॥ इम अष्टमंगलीक करवा : साथीओ १, श्रीवत्स २, कामकुंभ-कलशं ३, भद्रासन ४, नंदावर्तकनव खूणालो साथीओ ५, वर्द्धमान ते सरावसंपूट ६, मत्स युगल-बे माछलां पद्मदहनां ७, आरीसो, तिम वर-प्रधान 'फैलसहीत 'गुणसहीत छै जिहां, ९९. जिनपद आगलि विरच्यो ब. । १००. भविजनो ब. । १०१. जिम घर होई ब. । १०२. मंगलिकनी -- ब. । १०३. फलें - ब. । १०४. गुणे - ब. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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