Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
अप्रिल-२००७
गायति सुर गायन जिम मधुरं, तिम जिनगुंण गण मणि रयणो । सकल सुरासुर मोहन तूं जिम, गीत कहिओ हम तुह्म नयणो ॥३॥
तुम० ॥ गायति क० गायइं-गाय छै रागें करी, सुरगायन क० सुर-देवताना गायन, वली देव-गंधर्वनी परि श्री वीतरागना गुंण गाय छै । जिम मधुरं क० मधुर होइं तिम श्रीजिन-वीतराग मधुरे सादें वाजित्र समूह वाजतें, जिन गुणना गण क० समुदाय, तद्रूप मणी-रत्न जेहनई विषई, सकल जे समस्त सुरासुरने मोहइं, एहवा श्री १"जिनवरतुं स्तवन-स्तोत्र-गीत भणइं-कहिउं। अझो तुम्हारी दृष्टिं तुमारा नयन-तुह्मारी कृपायई, तेणें करीनइं अमें भक्ति कीधि छइं ॥३॥
एतलै १५ मी पूजा गीतनी थई । इति स्तवन गीत पूजा पन्नरमी १५ ॥
इति श्री गीतं स्तवनें १५ मी पूजा कही । हवई सोलमी पूजा नाटिकनी कही :
राग सोरठी तथा मधुमादन ॥ सरस वयवेष मुखरूपकुच शोभिनी विविध भूषांगनी सुरकुमारी । एक शत आठ सुर कुमर कुमरी करई विविध वीणादि वाजित्रधारी
॥१॥ सरस० ॥ राग सोरठी तथा मधुमादन रागें कहै छै । गीतें शुद्ध कडखो छई। जिम सुरीआभ देवें तथा आंमलेकैलपानगरे नाटिक कीर्छ । सरिखी वयें मुख-रूप-कुचें शोभती एहवी, कुंण ? विविध प्रकारनां भुषणनी धरनारी एहवी देवकुमारी । सुरभे (शोभे ?) श्रीवर्द्धमान स्वामीने वांदीनें आगलि जिमणी भुजा पसारीने १०८ देवकुमर कीधा, डाबी भुजा पसारी १०८ देवकुमरी 'कैरी तेने हाथें ४८ वाजां विविध प्रकारे जे माहोमांहि ४८ वाजता तान साथै बत्रीस प्रकारे नाटिक कीg घणा वाजिब बाजतें । तिम बीजायै १२८. तुं जिन ब. । १२९. जिनेश्वरनुं ब. । १३०. दृष्टि-ब. । १३१. आमलकप्पानगरें ब. । १३२. डावि भूजाथी - ब । १३३. किधी - ब.। १३४. बत्रीसबद्ध नाटिक करें - ब. ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106