Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 77
________________ 12 अनुसन्धान ३९ प्रकारना वाजिबनी सामेरी रागई कहइ छइ : राग सामेरी ॥ समवसरण जिम वाजा वाजई, देव दुंदुभि अंबर गाजइं । ढोल नीसाण विसालो । भुंगल झल्लरि पणव नफेरी । कंसाला दडवडी वर भेरी । सिरणाइ रणकालो ॥१॥ सामेरी रागेण गीयतें । त्रिपदी थोयनी देशी । चोवीस तीर्थंकरने समवसरणने विषई जिम देवता गढनें कांगरें ऊभा थिकां वाजा 'वजावें । देवतानी दुंदुभि आकाशनें विषइं गाजई । आकाशे अंबर गाजी रहें । च्यार दरवाजई ढोल, नींसाण, नगारां मोटां तिम वाजइ । वाजते थकई भविजन सांभली भंगल, नाल, झलरि, पणंव कहतां ढोल, वली नफेरी, कंसाल, दुडवडी-मोटी भेरी, सकल शब्द वाजतें थकें, पाणव नें नफेरी ढोल वाजतै, मोटी कंसालना शब्द वलि भेर वाजतें थकें, इत्यादिक सरणाईना शब्द रणतूरना शब्द "काहलना सब्द वाजतें थातइं ॥१॥ मरुज वंश सरती नवि मुंकइं, सतरमी पूजा भवि नवि चूकई । वेणी वंश कहइं जिन जीवो, आरती साथि मंगल पईवो ॥२॥ मादल, वंशनी मूरली, सर तिनइं-तीन स्वरें बोलती थकी शब्द न मूंकइं । एहवी सतरमी पूजा भविक देव-मनुष्य चूकई नही । जे भावखंडना न थाइं । वेणी वंशवीणा शब्द, मुरली, श्री वीतरागने इंम कहै छै जे 'श्रीजिन चिरंजीवो' ! 'स्वामी ! तुं चीरंजीव' । पूज्ये पूज्य ज्यै जीव जें आरती साथइ मंगलदीवो प्रगट करई, स्वामीनें आरती मंगल ॥२॥ हवइ सतरमी पूजानुं गीत कहै छै : । गीतं ॥ घणुं जीवि तूं जीव जिनराज जीवे घj शंख सरणाई बोलै । १५१. वाजइ - अ. । १५२. झालर ना शब्द ब. । १५३. काहली ब. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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