Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
96
अनुसन्धान ३९
वीतरागस्तवनमां श्लो. ५मां मोदा- छे त्यां मोहा-- होवू घटे. ऋषभदेवस्तोत्र श्लो. ४०मां 'धृती' छे त्यां 'धृता' साचो पाठ बने. महावीरस्तोत्रमा भवे' एवो पाठ सम्पादके कल्प्यो छे पण अहीं '०भवग्रीष्मकाले' एवो समास ज वांचवो. जोइए. टिप्पणोमां १ २ ३ वगेरे अंको पूर्णविरामना चिह्न वगर मूक्या छे. क्रमसूचक अंको १. २. ३. एम पूर्णविराम चिह्नयुक्त लखवा जोइए. ते वगर अंको जोडेना शब्दनी संख्याना वाचक विशेषण बनी जाय. आ आधुनिक परिपाटी छे.
श्रेयांसनाथस्तवननी देशीओ ध्यान खेंचे छे. कविए मोटा भागे दीर्घ देशीओ लीधी छे, अने तेमां प्रास-लय-आंकणी बराबर साचव्या छे. ढबना आधारे जोतां आ देशीओ ते समयना लग्नगीतो के प्रसंगगीतोनी होवानी कल्पना आवे.
सीमन्धरजिनस्तवन द्वारा अतिशयवर्णनना स्तवनोमां वधु एक स्तवननो उमेरो थाय छे. क. ६मां वाचननी भूल छे. अहीं कविनो आशय एवो छे के प्रभु जेवो समोवडियो बीजो कोई नथी के जेनी उपमा आपी शकाय. अर्थ-आशयना आधारे पाठनी अशुद्धि जणाय अने शुद्ध पाठनी कल्पना पण करी शकाय. "जि अनुपम दिवाइ' एम वांच्यु छे त्यां "जिअ उपमा दिवाइ' एवं होवानी पूरेपूरी सम्भावना छे. 'नुपम' वांच्युं छे त्यां उपम होइ शके. ए ज रीते 'होइय स्यु' छे त्यां 'होइ यस्युं होइ शके. यस्युं =जस्युं =जिस्युं क. १४मां मांद छे ते मान्द्य (रोग)मांथी निष्पन्न छे. मरगी-मांद एवो प्रयोग ते समये प्रचलित हशे. आथी मांद(गी) एम (गी) कल्पवानी जरूर नथी. क. १४-१५-१६मां नु हइ, नु हवइ वगेरे प्रयोगो छे. ते आजना न्होय, नो' यना पूर्वगामी छे. 'हुइ'नो उकार 'न'मां आवी जतां नु हइ थयु. स्वरव्यत्यास नामे ध्वनिपरिवर्तननो नियम आमां काम करे छे. कडी ३१मां इंद्री, कडी ३२मां जीवी शब्दमा अन्तिम वर्णनो-इन्द्रिय अने जीवित =जीवियना 'य'नो - लोप थयो छे अने अन्तिम स्वर दीर्घ थवा द्वारा लुप्त 'य'नी हाजरी परखाय छे. क. ३७मां 'समु' पछी द्रा सम्पादके लखवो जोइतो हतो. क. ३८मां बीजा-त्रीजा चरणोमां थोडा शब्दो छूटी गया छे. अन्तमां कळश छे खरो पण ते मात्र छेल्ली कडीमां छे, ज्यारे अहीं तेनाथी आगली कडीने कलश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 99 100 101 102 103 104 105 106