Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 98
________________ ओप्रिल-२००७ 93 ट्रॅक नोंध आ अंकना आवरण-चित्र विषे मारी सामे 'क्षेत्रसमास प्रकरण'नी एक सचित्र पण जर्जरित अने खण्डि प्रतिनां थोडांक पानां छे. सद्भाग्ये तेनुं अन्तिम पत्र एमां छे. ते पानां पर ६ पंक्तिनी पुष्पिका छे, ते पैकी ३ पंक्तिओ हरताल वडे भूसी नाखवामां आवेली छे, अने शेष ३ वंचाय छे, तेनुं लखाण आ प्रमाणे छ : "संवत् १६२९ वर्षे फागुण पासे सुकुलपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ शुक्रवासरे मेवातमण्डले बेरोजनगर मध्ये मुनि जगराजेन लिखिता, चित्रता मुनि-पासचन्द्रेण श्रीमस्तु कल्याणं वाच्यमानं भूयात् ॥" । आ पानांमां जे थोडांक चित्रो छे ते पैकी बे चित्रो आ अंकना आवरण पर मूक्यां छे. उपरनी पुष्पिकाथी निश्चितपणे समजाय छे के आ प्रति जैन साधुए लखी तो छे ज; पण तेनां चित्रो पण एक जैन साधुए ज आलेखेला छे. जैन मुनिओ ललित कलामां केटला पारंगत हता ते आ उपरथी फलित थाय छे. ___ अने आ कांई एकलदोकल दाखलो नथी. ताजेतरमां ज ब्रिटिश लायब्रेरी द्वारा प्रकाशित 'जैन हस्तप्रतोना सूचिपत्रो'मां त्यांनी सचित्र के विशिष्ट प्रतिओनी छबीओ छापेल छे, तेमां पण एक प्रतिना अन्तभागनो फोटो छे, तेमां आ प्रमाणे वंचाय छ : "०००पण्डित देवकुशलेन लिखिता प्रतिरियम् । पं० कनककीर्तिमुनिना चित्रिता ॥" ए प्रति शालिभद्रचौपाईनी छे. - शी० Jain Education Internasional Jain Education International . For Private & Personal Use Only For Pivate & Personal use only www.jainelibrary.org

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