Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 25
________________ 20 तपागच्छ गुर्वावली स्वाध्याय सं. उपा. भुवनचन्द्र पार्श्वचन्द्रगच्छ जैन संघ, मांडलना हस्तलिखित संग्रहनी प्रकीर्ण पत्रोनी पोथीमां एक पत्रमांथी मळेली त्रण रचनाओ अहीं रजू करी छे. तपागच्छ गुर्वावली सज्झायना कर्ता वि. हीरसूरिजीना शिष्य पण्डित विजयहंसना शिष्य मुनि विनयसुन्दर छे. पट्टावलीनां नामो तो प्रसिद्ध छे, परन्तु कविए केटलीक महत्त्वनी विगतो पण सांकळी छे ते इतिहासनो अभ्यासीओने रसप्रद जणाशे. जेमके अनुसन्धान ३९ - २६मा पट्टधर समुद्रसूरि खुमाणकुलना हता; मानदेवसूरि हरिभद्रसूरिना मित्र हता; विमलचन्द्रसूरि सुवर्णसिद्धि जाणता हता; पेथडशाहे धर्मकीर्तिगुरुना उपदेशथी १०८ जिनालयोनो जीर्णोद्धार कराव्यो हतो; विजयदानसूरि वडलिपुरमां स्वर्गवासी थया हता; विजयहीरसूरिना समुदायमां त्रण उपाध्यायो मेरु समान गणाता हता इत्यादि. पट्टक्रमांकमां गरबड छे, प्रतिमां जेम छे तेम ज अहीं राख्या छे. गुर्वावली पछी वि. दानसूरिनी स्तुतिना श्लोको छे, ते अशुद्ध अने त्रूटक छे छतां अहीं लीधा छे. त्यार बाद हंसराज रचित वि. हीरसूरिगीत छे ते पण अहीं आप्युं छे. हीरसूरिजी महाराज प्रत्ये तेमनी विद्यमानतामां ज सकल संघमां केवो उत्कृष्ट अहोभाव प्रवर्ततो हतो तेनुं प्रतिबिम्ब गुर्वावली तथा गीतमां जोइ शकाय छे. Jain Education International (१) सकल सुरासुर सेवित पाय । प्रणमी वीर जिणेसरराय । तस शासन गुरुपद पटधरू । भगति थुणस्युं सोहाकरू ||१|| पहिलउं प्रणमउं गोतम स्वामि । १ सर्वसिद्धि हुइ जस लीधर नामि । सुधर्म स्वामि २ पंचम गणधर । जंबूस्वामि ३ नामि जयकार ||२|| प्रभवस्वामि ४ तस पटधर ५ नमउ । शय्यंभव पटधर पांचमउ | यशोभद्र ६ भद्रबाहु ७ मुणिंद । थूलभद्र ८ नमतां आणंद ||३|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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