Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 55
________________ अनुसन्धान ३९ श्रीवितरागनी भक्ति करीने जिम जिनचरणकमल हरि क० चोसट्ठि इंद्रई पूज्या-अरच्या छे, ते भाव आंणी तेणी परइं हे भविक ! तूं पणि इम करों। भव्यलोक श्रीजिनपदपंकजनें पूजे छई तेहवो भाव निर्मल आंणीनई ॥ मोगर० ॥२।। गीत पूर्ण छइं ॥ ___ एतले जिनचरणे कुसुम थापी हवें फूलनी पांचमी पूजा- गीत कहस्यूं । गीतं० नृत्यकी - आसाउरी - नट्टसिरी ।। पारग तेरे पद पंकजोपरि विविध कुसुम सोहइं, हारे विवि० । औरॅनकुं आक धतूरे तुह्म सम नवि कोहे.... ॥१॥ पारग० ॥ हे पारग ! क. पारना पोहचनारि एतले भविजननें अपार संसार तेनो पार पमाडवें समर्थ ते माटें पारग ! तारा चरणे, हे वीतराग ! ताहरा चरण कमल ऊपरि विविध जातिनी उत्तम वृक्षनां कुसुम फूल तें ता[ग] चरणे शोभे छई । वली पाछली रागनी वलण केहवी । ओर-बीजा जे देव रागी स्त्रीयादिकना मोह्यां, दोसी देवनें आकनां धतुरनां कणयरादिकनां, बीलीनां पत्र, वेली प्रमुख फल शोभई । जे माटि श्रीअरिहंत तुंम सरिखां कांइ नही निरागी, तुह्म सम कोइ अपर देव छइं नही ते भणी-ते माटई पारग ॥१॥ तेरे०॥ ऐहवी विविध कुसुम जातिसुं जव पांचमी पूजा पूजई । तव भविजन रोग सोग सवि उपद्रव धूजइं ॥२॥ पारग० ॥ एहवी प्रकारई विविध भांतिनां जे फूल तेणें करीने, नाना प्रकारना कुसुमजाति करीनइं तुमनें जिवारइं° पांचमी पूजा पूजई कहतां करई, फूल चढावई, तिवारई तेहनइं सकल भविजनने - भव्य प्रांणीने रोग सोगपणुं सर्व वेगलूं जाइं, चिंता-फिकर सर्व उपद्रव उपशमई, विघन सर्व प्राणीनां धूजईअंगथी नाशइं ॥२॥ इति पांचमी छूटा फूलनी पूजा ॥५॥ ३४. नृतकी - ब. | ३५. नटसिरी - नटरागई ब. । ३६. पदपंकज परि । ३७. उर देवकुं आक धतुरे ब. । ३८. प्रकारनां - ब., । ३९. एह विविध ब. । ४०. ज्यारई ब. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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