Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 38
________________ अप्रिल २००७ ह. ह. ह. क. २ मिथ्यामत | क. ३ कर पसरी । दुरित तिमिर । (५९) क. ४ मु. मिथ्यामति । मु. कर फरसी । मु. कुमति तिमिर । Jain Education International ह. चितवि तस फल । मु. चिंतवित्त तस फल । ३. आमांनां केटलाक पाठान्तरो महत्त्वनां छे. दा.त. १. सातमी पूजानी ढाळी प्रथम कडीमां प्रचलित पाठ 'चित्त धरे ए' भले बंधबेसतो जणाय, पण त्यां टबा प्रमाणे तथा ह. प्रतो प्रमाणे 'चीतर्यो ए' एवो पाठ वधु सार्थक बने छे. २. दशमी पूजामां प्रसिद्ध पाठ “पाँच पीरोजडा" एवो छे. तेनो अर्थ पण स्पष्ट छे के लाल हीरा अने तेमां फरता पांच पीरोजा विधिवत् जड्या छे.' ते सामे ह.प्र.नो पाठ आवो छे " पाछि पीरोजडा" अर्थात्, पाछि एटले पाछळ- पृष्ठभूमां पीरोजा रत्न (भूरो रंग), ते उपर लाल हीरा ( प्रवाल वगेरे) विधिवत् जडेला छे. अहीं लाल वादळी रंगोनो जे एक रंगमेळ (Contrast ) रचाय छे, तेने कवि शब्दचित्र द्वारा देखाडी रह्या छे. ३. १२मी पूजामां आवतुं पदगुच्छ "जिम मिले कनकपूरसे " आ प्रसिद्ध पाठनो अर्थ 'कनक - सुवर्णना पूर साथे मळवुं' एवो ज सौ विचारे. अहीं ह.प्र. मां टबाकारे तेने स्फुट करी आप्यो छे : "जिम मिलई कनक - पूरीसइं" अर्थात् 'जेम कनक-सुवर्णनो पुरुष (सुवर्ण - पुरुष ) मळे ने हर्ष थाय तेवो हर्ष आ पूजामां छे ! आ अर्थ जोतां आ पाठ केटलो अर्थपूर्ण लागे ! ४. आज ढाळमां कडी २मां “भमर पई कहावती उडतें " आवो मुद्रित पाठ छे. 'भ्रमर' साथे 'उडते' बेसी पण जाय. ह. प्र. नो पाठ आवो छे : "भ्रमर पई कहावति जड तिं”, अर्थात् 'ते जड एवी कुसुम-माला (गुंजारव करतां) भमराना मोंए जाणे कहावे छे के.' आ अर्थ केटलो काव्यमय अने सुसंगत बने छे ! ५. १३मी पूजामा “शालि वरतंदुला" पाठ जाणीतो छे. 'शालि' पण ने 'तंदुला' - 33 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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