Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 40
________________ अप्रिल-२००७ लीधे 'सादो' शब्द मूकेल हशे. मुद्रित - प्रमाणे आ 'गोडी सिंधुओ' छे. ढाल ९, राग तो गोडी ज छे, पण आ ढाल 'वस्तु' छन्दमां छे, अने तेनो ताल 'जाफरताल' छे, एम ह. नोंधे छे. ढाल १०, 'धवलनी देशी'मां (पण) गवाय. धवल एटले 'धोळ', 'धवल-मंगल' ज समजीए. गीत १०, मु. मां गोडी, ह.मां तोडी, ते पण त्रिताली-त्रितालमां. ढाल ११, केदारो तथा गौडी. गीत १३, मु. प्रमाणे 'महावसंत', ह.मां 'वसंत' ज. ढाल १४, आना गोडी रागने ह.मां 'गोडो' के गौड' नामे नोंघेल छे. ढाल १५, 'त्रिवेणी गोडी'. मु. मां श्रीराग छे. ढाल १६, सोरठी ने मधुमादन. आ बीजो राग हाले प्रचारमा हशे? सांभळ्यु नथी. उपरोक्त 'त्रिवेणी' ने 'अधरस'नुं पण एम ज होय तेम लागे छे. ढाल १७मां राग तो 'सामेरी' छे ज, पण तेनी देशीनुं पण नाम अहीं मळे छे : 'त्रिपदी थोयनी देशी'. गीत १७, मु. प्रमाणे राग-गूर्जरी तो ह.मां 'कडखौ' (कडखानी देशी). कलशगीतने 'धन्यासी-मिश्र' गणावेल छे. टबामां केटलाक मुद्दा परत्वे नोंध वा छणावट मळे छे ते ध्यानार्ह लागवाथी अत्रे ते विषे नोंध आपवामां आवे छे :(१) प्रारम्भिक दूहात्मक गाथा ४ ना टबारूपे तथा १३ मी पूजानी पछी एम बे बखत आरती-मंगलदीवो क्यारे करवा, ते मुद्दे चर्चा छे. टबाकार एम सूचवे छे के धूप, अक्षत, नैवेद्य वगेरे रूप पूजा करवा पूर्वे ज आरती-मंगलदीवो करवां जोईए. ते पछी उक्त पूजाओ, ने छेल्ले ८ मंगल-आलेखन होय. कोई मत एवो पण छे के पूजानी पहेलां स्नात्र करे त्यारे स्नात्र बाद तुर्त आरती-मंगलदीवो करी लेवाय, एटले अहीं १३मी पुजारूपे ८ मंगल रचवानो बाध नथी रहेतो. अहीं तर्क एवो आपेल छ के नित्य पूजाने छेडे पण जो आरती व. थतां होय तो स्नात्र पछी तो खास करवां ज रहे; भले पछी मोटी पूजा थवानी होय. आ बधुं जणाव्या पछी पण लेखक कशो आग्रह राखवानी ना पाडे छे, ने बहुश्रुतनी आज्ञा प्रमाणे तथा वीतरागनी भक्ति योग्य रीते थाय तेम वर्तवानुं सूचवीने पोतानी वात पूरी करे छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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