Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 34
________________ अप्रिल-२००७ no ho no no no क. ३मां, ह. मां "चंपकस्यु दमणो० सुर गातइं रे" पाठ छे, ज्यारे मु. मां 'चंपकस्युं दमणो० चक्कि नामा रे" एम पाठ छे । आमां मु. नो क्रम वधु बंधबेसतो लागे छ । (२३) कडी-२, अंगी प्रभु अंगई । विरचयति जिम । मु. आंगी जिन अंगे। विरचति जिम । (२४) पूजा ८, क. १ अंगसु पूजता । मु. अंग सुपूजतां । जिनपद करइ भवि बंध । मु. जिनपद भवि करे बंध । (२५) क. २- पूजा जिन० । मु० पूजो जिन० । (२६) गीत ८, क. १ आणंद पूरो रे माई । मु. आनंद पूरे, पूरो रे० । (२७) क. २ करत मन जाणती । मु. करत तिम भविजन । (२८) पूजा ९, क. १ अति तुंग । म. अति उत्तुंग ।.. रणरणति । मु. रणझणंती । (२९) पूजा १०, क. १ मां पंक्ति ३-४ छे, ते मु. प्रमाणे ४-३ एम छे । पाछि पीरोजडा । मु. पांच पीरोजडा । तिहां जड्या । मु. जिहां जड्या । काने रविमंडल सम जिनकुंडल दीजीइ ए । मु. काने दो कुंडल शशीरविमंडल सम जिनवरने दीजीए ए । _(३०) गीत १०, क. १ह. जिनवर सीसि । मु. जिनवर सीस चड्यो । ह. बहु भूषण । मु. वर भूषण । ह. दूषण हो । मु. दूषणहर । no no no no no no no I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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