Book Title: Anusandhan 2007 04 SrNo 39
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 9
________________ अनुसन्धान ३९ हस्तप्रतिनी झेरोक्स नकल मांडवी - कच्छना श्रीखरतरगच्छ संघना ग्रन्थभण्डारमाथी प्राप्त थई छे, तेना आधारे आ सम्पादन करेल छे. प्रति जरा अशुद्ध छे. पडिमात्रामां लेखन छे. नकल आपवा बदल ते संघना प्रमुख हरनीशभाईनो आभारी छु. मुनिमाला 11211 महोपाध्याय श्रीसकलचन्द्रगणिगुरुभ्यो नमः || वंदिअ सिद्धसमिद्धं पणटुकम्मरिउजूहं । परमिट्ठपंचमपए ठिअ मुणिमालं विचितेमि वंदे पढमनरिंदं पढममुणिदं [च] पढमजिणचंदं । जगसुहसुरतरुकंदं रिसहं भुवणम्मि कयभद्दं भरहस्स पुत्त - नत्तुअ - मुणिवसहसए सए य समरंतो । हिए नमामि भरहं दसहिं सहस्सेहिं सममेअं ॥३॥ ॥२॥ बंभीसुंदरिबुद्धं बाहुबलि तह जुगाइपुत्ताणं । अट्ठावणीणं केवलनाणीण वंदामि ॥४॥ 11411 भरहस्स पढमपुत्तं आइच्चजसं नमामि केवलिणो (णं) । तह आसबलमुणिदं बलभद्दं वसुबलं वंदे तत्तो महाबलं तह अमिअबलं मुणिसुभद्दकेवलिणं । सागरभद्दमुणिदं वंदेइ (मि?)अ अट्ठ केवलिणो ॥६॥ अन्ने रिसहजिणस्स य तित्थे गणहरसुलद्धिपत्ताणं । अइसइअणगारीणं आयरियाणं च तह वंदे एवमसंखमुणिदे सिद्धाणुत्तरविमाणसुहपत्ते । जावजिअजिअ (ण) मुणिदं गणहरमुणिसंजुअं वंदे ॥८॥ सगरं मघवं मुणिवं सणकुमारं च संति- कुंथजिणं । वंदामि अरमुणिदं पउमं हरिसेण जयसेणं ॥९॥ Jain Education International 11611 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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